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जंगलों में लगने वाली आग की सूचना सीधे बीट गार्ड को मिलेगी, NIT हमीरपुर के विशेषज्ञ कर रहे हैं शोध

जंगलों में लगने वाली आग का अलर्ट सीधा वन विभाग के कार्यालय और फॉरेस्ट गार्ड को मिलेगा. वहीं, एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञ इस पर शोध कर रहे हैं. देश के पर्वतीय इलाकों में जंगलों में लगने वाली आग से करोड़ों रुपये के संपदा हर साल नष्ट होती है. ऐसे में एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञों की यह खोज जंगलों की आग में नष्ट होने वाली संपदा को संरक्षित करने में काफी मददगार साबित हो सकती है.

NIT Hamirpur News, एनआईटी हमीरपुर न्यूज
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Published : Sep 14, 2021, 4:20 PM IST

Updated : Sep 16, 2021, 12:15 PM IST

हमीरपुर:अब जंगलों में लगने वाली आग का अलर्ट सीधा वन विभाग के कार्यालय और फॉरेस्ट गार्ड को मिलेगा. एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञ इस पर शोध कर रहे हैं. शुरुआती चरण में जंगलों को आग से बचाने के लिए चल रहे इस शोध में विशेषज्ञों ने सफलता हासिल की है.

यह अलर्ट मैसेज व फोन कॉल के जरिए कंट्रोल रूम से संबंधित बीट के गार्ड को मिलेगा. इतना ही नहीं बड़े जंगलों में भीषण आग को नियंत्रित करने के लिए ऑटोमेटिक सिस्टम यह बताएगा कि किस जगह और किस तरफ आग आगे बढ़ रही है और कैसे इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

देश के पर्वतीय इलाकों में जंगलों में लगने वाली आग से करोड़ों रुपये के संपदा हर साल नष्ट होती है. ऐसे में एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञों की यह खोज जंगलों की आग में नष्ट होने वाली संपदा को संरक्षित करने में काफी मददगार साबित हो सकती है.

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सेंसर नोड और ट्रांस रिसीवर तकनीक के सहारे चल रहा शोध कार्य: एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञ इस शोध कार्य को सेंसर नोड और ट्रांस रिसीवर तकनीक के सहारे आगे बढ़ा रहे हैं. दरअसल जंगलों में लगने वाली आग को सेंस करने के लिए सेंसर नोड कार्य करेंगे, जबकि ट्रांस रिसीवर तकनीक के सहारे यह सेंसर नोड मैसेज को पास भी करेंगे.

एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञों के इस शोध में एफिशिएंट फॉरेस्ट फायर डिटेक्शन मैकेनिज्म यूजिंग वायरलेस सेंसर नेटवर्क को जंगलों में स्थापित करने और इसे डिप्लॉय करने के तरीके पर खोज चल रही है, ताकि बड़े जंगलों के भूभाग में कम कीमत पर किस तरह से अलर्ट सिस्टम को स्थापित किया जाए और जंगलों को भी आग से बचाया जा सके.

दरअसल पर्वतीय इलाकों के जंगलों में जहां पहुंचना मुश्किल होता है वहां पर इन सेंसर नोड को फेंक दिया जाएगा, ताकि इन क्षेत्रों में भी आग लगने पर अलर्ट कंट्रोल रूम में सीधा मिल जाए और इन सेंसर नोड में अवेक और स्लीप फीचर भी शामिल किया गया है, ताकि कंट्रोल रूम से ही इनको बंद और ऑन किया जा सके. इससे सेंसर नोड में लगी बैटरी भी कम खर्च होगी और यह लंबे समय तक भी काम करेगी जिससे सिस्टम लंबे समय तक काम करेगा.

जंगल में किस दिशा में बढ़ रही आग इसका भी ऑटोमेटिक ही पता चलेगा: भीषण आग पर नियंत्रण पाने में काफी परेशानी होती है. ऐसे वन विभाग और फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों को यह पता लगाना भी मुश्किल होता है, किस जंगल में आग किस तरफ बढ़ रही है.

ऐसे में यह सिस्टम आग लगने के उपरांत है यह बताएगा कि जंगल में किस तरफ यह आग बढ़ रही है और कितनी तेजी से आग के बढ़ने की रफ्तार है. ऐसे में राहत और बचाव कार्य में जुटे दमकल और वन विभाग के कर्मचारियों को मदद मिलेगी.

हिमाचल के जंगलों में लगने वाली आग के आंकड़े: हिमाचल प्रदेश से पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में आग पर नियंत्रण पाने और इसकी सूचना तुरंत कंट्रोल रूम तक पहुंचाने में यह सिस्टम बेहद कारगर साबित होगा. पिछले 3 साल की अगर बात की जाए तो साल 2017-18 में 1832 की घटनाएं सामने आई थी, जबकि साल 2018-19 में यह आंकड़ा 2469 तक पहुंच गया है. जंगलों में आग की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है ऐसे में यह सिस्टम उन क्षेत्रों में कारगर साबित हो सकता है जहां पर आग की घटनाएं साल भर में अधिक सामने आती हैं.

हिमाचल प्रदेश काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट इस प्रोजेक्ट को स्पॉन्सर कर रही है. 5 लाख 60 हजार के इस प्रोजेक्ट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर सिद्धार्थ चौहान प्रोजेक्ट इंचार्ज के रूप में कार्य कर रहे हैं, जबकि को प्रोजेक्ट इंचार्ज के रूप में डॉक्टर प्रदीप इसमें शामिल है. अगले साल मई महीने तक इस प्रोजेक्ट को अंतिम रूप देकर साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट काउंसिल हिमाचल प्रदेश को सौंपा जाएगा.

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Last Updated : Sep 16, 2021, 12:15 PM IST

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