हमीरपुर: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के चंदन से भारत देश महकेगा. मैसूर के चंदन की मांग तो बहुत अधिक होती है, लेकिन अब हिमाचल प्रदेश भी खुशबूदार चंदन के लिए पहचाना जाएगा. हिमाचल के हमीरपुर स्थित डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के वैज्ञानिकों ने खास किस्म के चंदन की नर्सरी (sandalwood farming in himachal) तैयार की है. हजारों पौधों की नर्सरी तैयार हो चुकी है. अनुसंधान केंद्र के पास देश भर से पौधों की डिमांड आ रही है.
वैसे तो हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के शक्तिपीठ ज्वालामुखी में भी सैकड़ों चंदन के पौधे हैं लेकिन हमीरपुर में नर्सरी विकसित होने के बाद अब प्रदेश के अन्य भागों में भी इसके पौधे लगाए जा सकेंगे. नेरी स्थित अनुसंधान केंद्र में कुछ वर्ष पहले कर्नाटक से लाए चंदन के पौधों पर रिसर्च शुरु हुई थी. डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने अब उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी तैयार करने में सफलता हासिल की है. अभी भी यहां पर चंदन के पौधों पर लगातार शोध किया जा रहा है. चंदन की पैदावार से न केवल हिमाचल की पहचान बनेगी बल्कि यहां आर्थिकी भी मजबूत होगी.
डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के डीन विशेषज्ञ डॉक्टर कमल शर्मा का कहना है कि 25 वर्ष में चंदन का पौधा तैयार होता है, यह अवधि लंबी है. अनुसंधान केंद्र में यह प्रयास और शोध किया जा रहा है कि चंदन के ऐसे पौधें और प्रजाति विकसित किए जांए जोकि कम अवधि में तैयार हो. आम तौर पर 7 सालों में चंदन के पेड़ के लकड़ी खुशबू देने लगती है और 25 वर्ष तक यह इस्तेमाल करने योग्य होती है. 7 से 25 वर्ष तक यह चंदन अलग-अलग कीमतों पर बिकता है.
अनुसंधान केंद्र में शुरुआती दिनों में सफलतम तरीके से इन पौधों को तैयार किया जा रहा है और तैयार होने के बाद किसानों को आगे सप्लाई किया जा रहा है. बाहरी राज्यों से भी लगातार अनुसंधान केंद्र को डिमांड मिल रही है. उल्लेखनीय है कि पूजा-पाठ के अलावा चंदन का औषधीय प्रयोग भी होता है. खुशबूदार चंदन कई हजार रुपए प्रति किलो बिकता है. हमीरपुर में डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के समीप खग्गल गांव में चंदन की नर्सरी (Sandalwood Nursery in Khagal) भी तैयार की गई है. यह पौधे बीजों के जरिए तैयार किए जा रहे हैं. हालांकि, छोटे पौधों का संरक्षण काफी कठिन है.