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हिमाचल में इस जगह लिया था पांडवों ने चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान, आज भी मौजूद हैं निशान

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Published : Mar 9, 2022, 6:42 PM IST

Updated : Mar 9, 2022, 6:53 PM IST

हमीरपुर जिले के राजनौण में भी पांडवों ने अपना समय ब‍िताया था. बताया जाता है क‍ि राजनौण में पांडवों ने चक्रव्यूह (hamirpur rajnaun chakravyuh) का निर्माण क‍िया. इसके अलावा विशाल टियाले, पानी पीने के लिए नौण और अधूरे मंदिर का निर्माण किया. जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. इन्हें देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते राजनौण की ऐतिहासिक धरोहर विलुप्त होने के कागार पर पहुंच चुकी है. स्थानीय लोगों ने पुरातत्व विभाग से इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की गुहार लगाई है.

hamirpur rajnaun chakravyuh
राजनौण की ऐतिहासिक धरोहर

हमीरपुर: महाभारत तो सभी जानते हैं. वैसे तो महाभारत का युद्ध हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था. महाभारत में चक्रव्यूह का उल्लेख बेहद महत्वपूर्ण है. चक्रव्यूह में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए. अर्जुन के अलावा अभिमन्यु ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे जो चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानते थे. अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश तो करना जानते थे, लेकिन बाहर निकलना नहीं जानते थे. इतिहास और महाभारत का ज्ञान रखने लोगों को यह जानकारी है. अर्जुन ने इस चक्रव्यूह का ज्ञान कहा से लिया था, ये बहुत से लोगों को नहीं मालूम है. चक्रव्यूह की रचना के प्रमाण आज भी हिमाचल के हमीरपुर जिले के राजनौण इलाके में मौजूद हैं.

हिमाचल में पांडवों ने गुजारा था अज्ञातवास का समय- कहा जाता है कि संभवत अर्जुन ने चक्रव्यूह को समझने के लिए यहां पर एक शिला व्यूह की थी. यहां पर इसे व्यूह चक्र के नाम से जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश में हजारों वर्ष पूर्व पांडव काल के प्रमाण आज भी मौजूद हैं. पांडवों ने अज्ञातवास का अधिकतर समय हिमाचल प्रदेश सहित उत्तरी भारत के राज्य में ही गुजारा था. पांडवों के यहां पर समय व्यतीत करने के प्रमाण हिमाचल के हर जिले में देखने को मिलते हैं. हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर धनेटा इलाके के राजनौण में भी पांडवों ने अपना समय व्यतीत किया है.

विलुप्त होने की कगार पर हमीरपुर जिले के राजनौण की ऐतिहासिक धरोहर.

विलुप्त होने की कगार पर धरोहर- राजनौण में उन्होंने चक्रव्यूह, के अलावा विशाल टियाले, पानी पीने के लिये नौंण और अधूरे मंदिर का निर्माण किया था, जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. जिन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. स्थानीय लोगों ने पुरातत्व विभाग से इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की गुहार लगाई है.

हजारों साल पुरानी धरोहर के दीदार के लिए पहुंचते हैं लोग- राजनौण हमीरपुर की सोहलासिंग धार में स्थित है. यह हजारों वर्ष पुरानी धरोहर है, जिसका दीदार करने के लिए सैकड़ों लोग राजनौण पहुंचते हैं. 6 हजार वर्ष पूर्व पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान राजनौण में अर्जुन द्वारा चक्रव्यूह को समझने के लिए चक्रव्यूह को पत्थर की शिला पर उकेरा जोकि आज भी राजनौण में मौजूद है.

अर्जुन ने पत्थरों पर उकेरी थी चक्रव्यूह की संरचना.

पांडवों ने राजनौण में कराए थे कई निर्माण- राजनौण में एक विशाल नौंण का निर्माण पांडवों द्वारा पीने के पानी के लिए किया गया था. जो आज भी इस स्थान पर देखा जा सकता है, मौजूदा समय में इस नौण से जल शक्ति विभाग द्वारा विभिन्न गांवों के लिए पेयजल मुहैया करवाया जाता है. यही नहीं राजनौण में पांडवों ने विशाल टियाले का भी निर्माण करवाया था जो अभी भी मौजूद है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल इस चक्रव्यूह से होकर गुजरता है. पांडवों ने इसे इस रूप में क्यों बनाया था, यह किसी को नहीं पता. मंदिर में आज भी पौराणिक बहुत बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएं देखी जा सकती हैं, लेकिन यह ऐतिहासिक धरोहर अनदेखी के चलते विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है.

एक चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र में दूसरा हमीरपुर में- इतिहासकार राकेश कुमार शर्मा बताते हैं कि एक चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र में है और दूसरा हमीरपुर के राजनौण में स्थित है. राजनौण का इतिहास पांडव काल से है और इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि कुरुक्षेत्र की तरह हमीरपुर के राजनौण में भी चक्रव्यूह बना हुआ है. कुरुक्षेत्र का और इस जगह का कोई ना कोई संबंध जरूर है और यह शोध का विषय है.

राजनौण में स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर.

सरकार को इस ओर देना चाहिए ध्यान- राजनौण में आए हुए स्थानीय निवासी सजय कुमार का कहना है कि पांडवों के समय में आधा अधूरा मंदिर बनाया हुआ था. अज्ञातवास पूरा होने के बाद पांडव यहां से चले गए थे. नौण के साथ बने हुए चक्रव्यूह के बारे में बताया कि युद्व में कैसे विजय पाने के लिए चक्रव्यूह के बारे में बताया गया है. उन्होंने मांग की है कि मंदिर को संजोने के लिए प्रदेश सरकार प्रयास करे.

पांडवों द्वारा पत्थरों पर उकेरा गया चक्रव्यूह.

पर्यटन की दृष्टि से इस किया जा सकता है विकसित- पर्यटन विशेषज्ञ सुरेंद्र ठाकुर का कहना है कि धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से इस जगह को विकसित किया जा सकता है. प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर से यह महज 40 किलोमीटर दूर है और जिला मुख्यालय से इसकी दूरी महज 35 किलोमीटर है. उनका कहना है कि अच्छे साधन मुहैया कराए जाएं तो पर्यटन की दृष्टि से यहां पर विलेज टूरिज्म के लिए इस साइट को विकसित किया जा सकता है. प्रशासन और स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर इसे विकसित किया जा सकता है.

शोधार्थियों के लिए संभावनाओं से भरी है यह जगह- वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा कहते हैं कि शोधार्थियों के लिए भी यह जगह संभावनाओं से भरी हुई है. यहां पर पर्यटन को विकसित करने के लिए अभी तक कारगर प्रयास नहीं किए गए हैं. इस ऐतिहासिक स्थल को धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की काफी संभावना है. उन्होंने कहा कि काफी अफसोस की बात है कि किसी भी सरकार ने इसके उद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाया. अगर कोशिश की जाती तो क्षेत्र के विकास के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के साधन पैदा होते.

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Last Updated : Mar 9, 2022, 6:53 PM IST

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