हमीरपुर: देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं और इस वर्ष को आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) के रूप में मनाया जा रहा है. आजादी के सात दशक बाद (Indian Independence Day) भारत हर मोर्चे पर दुनिया के अग्रणी देशों को टक्कर दे रहा है. इसमें स्वतंत्रता सोनानियों और साहित्यकारों ने भी अपनी भूमिका निभाई है. इनमें से एक नाम है यशपाल शर्मा (Best of Bharat) का.
हिमाचल में जन्मे यशपाल शर्मा वो क्रांतिकारी (Freedom Fighter Yashpal Sharma) थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई बम और बारूद से शुरू करके कलम की स्याही से क्रान्ति की गाथा लिखी. शायद ये ऐसे पहले क्रांतिकारी हैं जिन्हें गुलाम भारत में और आजाद भारत में भी जेल जाना पड़ा. स्वतंत्रता सेनानियों और साहित्य जगत में यशपाल शर्मा का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है.
फिरोजपुर छावनी में हुआ था यशपाल का जन्म: यशपाल शर्मा ने समाज और साहित्य में नए प्रतिमान स्थापित किए. यशपाल शर्मा सामाजिक चेतना के अग्रणी क्रांतिकारी थे. मुंशी प्रेमचंद के बाद कथा साहित्य में इनका नाम अग्रिणी रूप से लिया जाता है. यशपाल का जन्म 3 दिसंबर 1903 को साधारण कारोबारी हीरालाल के घर फिरोजपुर छावनी में हुआ था. उनके पिता बिना लिखी-पढ़ी के कर्ज देते थे. गांव रंघाड़ (भूम्पल), जिला हमीरपुर में दो तीन कनाल जमीन और कच्चा मकान ही उनकी कुल संपत्ति थी.
इनकी माता फिरोजपुर छावनी के आर्य अनाथालय में अध्यापिका थीं. माता उन्हें स्वामी दयानंद के आदर्शों के अनुकूल एक तेजस्वी वैदिक प्रचारक बनाना चाहती थीं. यशपाल शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई. सात-आठ वर्ष की आयु में उनका गुरूकुल कांगड़ी में प्रवेश हुआ. 1917 में चौदह वर्ष की उम्र में असाध्य रोग से पीड़ित हो गए. बेटे को बचाने की उम्मीद लिए इनकी माता इन्हें गुरूकुल कांगड़ी से लाहौर ले आईं और डीएवी स्कूल में दाखिला करवा दिया.
स्कूली जीवन से ही गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे यशपाल: स्कूली जीवन में ही यशपाल शर्मा (Freedom Fighter Yashpal Sharma) गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे. 1917 में रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया और गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया. आंदोलन के सक्रिय और कर्मठ कार्यकर्ता बने. 1921 में फिरोजपुर छावनी के मनोहर लाल मेमोरियल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. वजीफा मिलने के बावजूद असहयोग आंदोलन के कारण सरकारी कॉलेज में भर्ती होने से इनकार कर दिया.
गांधी जी ने चौरा चौरी की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. इससे यशपाल शर्मा निराश हो गए. इसके बाद उन्होंने लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज लाहौर में दाखिला लिया. लाहौर उस समय क्रांतिकारियों का अड्डा था. यहीं भगत सिंह, सुखदेव व भगवती चरण के संपर्क में आए. इसके बाद इन्होंने गांधीवाद का रास्ता छोड़ दिया और गरम दल में शामिल हो गए.
क्रांतिकारियों के बीच बम एक्सपर्ट के रूप में जाने जाते थे यशपाल: चंद्रशेखर आजाद, भागत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी का काम देखने लगे. इन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया. क्रांतिकारियों में ये बम एक्सपर्ट के रूप में जाने जाते थे. सन 1929 में लाहौर बम फैक्ट्री में पकड़े जाने पर सुखदेव गिरफ्तार हो गए और यशपाल फरार हो गए थे. अब भूमिगत होकर काम करने लगे थे.
1929 में लॉर्ड इरविन को ले जा रही ट्रेन को बम से उड़ाया: 23 दिसंबर 1929 को वायराय लॉर्ड इरविन को ले जा रही ट्रेन को इन्होंने बम से उड़ा दिया. इसके बाद जनवरी 1930 में भगवती चरण के साथ मिलकर हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना के घोषणा-पत्र 'फिलॉसफी ऑफ दी बम' को लिखा. फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आजाद की शहादत के हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन सेना के कमांडर इन चीफ चुने गए. पर्चों पर इनका नाम और पोस्टर छपने लगा. पोस्टर पर नारों के जरिए युवाओं को जागरूक और संगठित करने लगे.
ऐसे में लाहौर और दिल्ली षडयंत्रों के मुकदमें में फरारी के कारण गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार ने पांच हजार रुपए के इनाम का विज्ञापन 23 जनवरी 1932 को निकाल दिया. 22 जनवरी 1932 को इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय गोलियां खत्म होने पर यशपाल शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट ने इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 7 अगस्त 1936 को यशपाल शर्मा का विवाह जेल में ही प्रकाशवती के साथ हुआ था.
प्रकाशवती से इनकी मुलाकात क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान ही हुई थी. प्रकाशवती भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थीं. इसी कारण हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के पदाधिकिरियों के साथ इनकी अनबन भी हुई थी, क्योंकि पार्टी की सभी लोग अविवाहित थे और अविवाहित ही रहना चाहते थे. पार्टी में शामिल होने की शर्त भी यही थी.
पंजाब जाने पर पाबंदी के बाद यूपी में रहने लगे यशपाल: 1937 में यूपी में कांग्रेस मंत्रिमंडल बनी. इसी दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू की एक महिला परिचित ने अंग्रेजों से बातचीत कर इन्हें राजनैतिक कैदी बनवा दिया. 1937 में ही सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने का फैसला किया गया. इनमे यशपाल शर्मा भी शामिल थे. पांच साल बाद इनकी जेल से रिहाई हुई, लेकिन इनके पंजाब जाने पर सरकार ने पांबदी लगा दी. ऐसे में ये यूपी में जाकर रहने लगे.
जेल में यशपाल शर्मा का स्वास्थ्य खराब हो गया था, पर इनकी कलम में आग अभी बाकी थी. ऐसे में उन्होंने अब कलम के जरिये क्रांति की मशाल जलाए रखने का फैसला किया. नवंबर 1938 से विप्लव पात्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया. मार्क्सवाद की पाठशाला और सिंहावलोकन के कुछ अंश पत्रिका के प्रमुख आकर्षण थे. सामग्री तैयार करने से लेकर, छपाई की व्यवस्था, डिस्पैच और बिक्री के झंझटों सब कुछ के लिए दो ही व्यक्ति थे, यशपाल और उनकी पत्नी प्रकाशवती, लेकिन अपनी विशेषता के कारण विप्लव को बाजार में भरपूर समर्थन मिला. नवंबर 1939 दीपावली से विप्लव का उर्दू संस्करण भी बागी नाम से निकलने लगा. विप्लव से अंग्रेज इतने परेशान हुए कि उसे जबरन बंद करवा दिया.