धर्मशाला: जनवरी 2016 में पठान कोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले में शहीद संजीवन राणा का परिवार घर के मुखिया के चले जाने से उतना नहीं टूटा, जितना सरकारी तंत्र की वादाखिलाफी से टूटा है. संजीवन जब शहीद हुए तो तत्कालीन सरकार के नेता और बड़े अफसर घर आए थे.
संजीवन राणा की शहादत के बाद कई बड़े राजनेता अंतिम संस्कार में शामिल होने उनके गांव सियूंह पहुंचे थे. उस वक्त राजनेताओं ने उनके नाम पर कई घोषणाएं की थी लेकिन तीन साल बीतने के बाद अब तक इस ओर कोई कदम नहीं उठाया है. शहीद के नाम पर न तो छत्तड़ी कालेज का नामकरण किया गया है और न ही शहीद की याद में पार्क और प्रतिमा लगाने का काम शुरू हुआ.
शहीद की अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुंचे तत्कालीन परिवहन मंत्री जीएस बाली ने श्मशान घाट की बदहाली और रास्ते की दुर्दशा को देखते हुए उसी समय श्मशान घाट निर्माण के लिए 3 लाख रुपये देने की घोषणा की थी. आरोप है कि श्मशान घाट के लिए आया पैसा साथ लगती पंचायत को चला गया.
वहीं शहीद संजीवन राणा की छोटी बेटी कोमल ने कहना है कि उनके पिता की शहादत के समय राजनेताओं ने परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने, छत्तड़ी कालेज का नामकरण शहीद के नाम पर करने, पार्क बनवाने और श्मशानघाट बनवाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. कोमल का कहना है कि राजनेता घोषणाएं तो कर देते हैं लेकिन उन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है.
शहीद के परिवार के सदस्यों का ये भी आरोप है कि प्रशासन ने श्मशानघाट भी सही ढंग से नहीं बनवाया है. ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि शहीद के नाम पर हुई घोषणा पूरी हो गई है. शहीद के नाम पर बनाए गए बस स्टॉप पर लगाए गए बोर्ड से भी शहीद का नाम तक मिट चुका है.