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Himachal Sair Festival: प्रदेश में सायर पर्व की धूम, जानिए क्यों और कैसे मनाया जाता है ये त्योहार

Himachal Sair Festival: हिमाचल में मंगलवार को सायर उत्सव की धूम है. सायर उत्सव लोगों में खासा उत्साह दिख रहा है. जानें क्यों और कैसे मनाते हैं ये पर्व...

Himachal Sair Festival

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Published : Sep 17, 2019, 9:51 AM IST

Updated : Sep 18, 2019, 10:05 AM IST

धर्मशालाः देवी-देवताओं का प्रदेश हिमाचल पूरे देश में देवी भूमि की पहचान रखता है. इसके साथ ही प्रदेश में हर साल अनेकों मेले और त्योहार मनाए जाते हैं. भारतीय वर्ष के अनुसार भाद्र माह के समाप्त होते ही आश्विन माह शुरू होता है और इस माह के पहले दिन सायर का त्योहार मनाया जाता है. इसे सैर और सेरी पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है. हिमाचल में मंगलवार को सायर उत्सव की धूम है. सायर उत्सव लोगों में खासा उत्साह दिख रहा है.

वहीं इन दिनों ठंडे क्षेत्रों में सर्दी की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है और लोग सर्दियों के लिए अनाज और लकड़ियां आदि जमा करके रख लेते हैं. इस उत्सव के आते ही बहुत से त्योहारों का आगाज हो जाता है. सायर पर्व के बाद दिवाली तक विभिन्न व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं.

वीडियो.

इसलिए मनाते हैं सायर पर्व

सायर के समय मक्की व धान की नई फसल तैयार हो गई होती है. इस दिन किसान फसलों की पूजा करते हैं. कई जगह मेले लगते हैं, कांगड़ा-मंडी में ज्यादा धूमधाम से मनाते हैं. कहते हैं कि एक दौर था जब सुख सुविधाओं का अभाव था और हर साल बरसात के मौसम में लोग कई बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते थे. इससे जो लोग बच जाते थे, वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे. बरसात माह के खत्म होने पर लोग इस उत्सव को खुशी-खुशी मनाते थे. तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है.

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सायर पर बनाए जाते हैं स्वादिष्ट व्यंजन

पूजा की थाली

इस उत्सव पर घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं. इनमें रोटियां, मिठड़ू, पकोड़ू व पतरोडू विशेष हैं. सुबह मक्की व धान की पूजा करते हैं और अच्छे भविष्य की कामना की जाती है. घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के लिए लोग आते हैं. उन लोगों को घर में बने विभिन्न व्यंजनों का भोजन करवाया जाता है. सायर के त्योहार के दौरान एक दूसरे को अखरोट बांटे जाते है. सायर को अखरोट का त्योहार भी कहा जाता है. अखरोट का खेल खेलकर अपनी अपनी हार-जीत भी सुनिश्चित करते हैं. सदियों से सायर मनाने का विशेष महत्व है.

कांगड़ा में सदियों से मनाया जा रहा है त्योहार

सायर पर्व के दौरान पूजा-अर्चना करते हुए

कांगड़ा में भी सायर का त्योहार सदियों से धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दिन घर के बुजुर्ग व महिलाएं हाथ में भोजन की थालियां एक-दूसरे को परोसती हैं. सुबह से लेकर शाम तक अखरोट से खेल का दौर जारी रहता है. इस दिन परिवार के तमाम सदस्य नाई के आने की राह देखते हैं. सुबह नाई घर-घर जाकर अपने साथ लाए घमीरू सायर की पूजा करवाता है, जिसे सैर वंदना कहते हैं.

वहीं, कहा जाता है कि संक्रांति के पहले दिन नाथ संप्रदाय जिन्हें जोगी भी कहा जाता है, वह घमीरु लाकर घर के अंदर रखता है, जिसकी सपरिवार पूजा की जाती है. इनके साथ बरसात में होने वाले फल और सब्जियां भिंडी, अरवी, मक्की को घमीरू के साथ रखते हैं. सुबह नाई से सायर का पूजन करवाने के बाद अखरोट दक्षिणा के रूप में भेंट करते हैं. इस दिन सायं बच्चे समूह में गांव में घर-घर जाकर सायर गीत गाते हैं और सुख, समृद्धि और यश की मंगल कामना होती है.

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Last Updated : Sep 18, 2019, 10:05 AM IST

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