चंबाः भौगोलिक संपदा और नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर स्यूल नदी के दोनों किनारों पर फैली सलूणी घाटी को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल्द एक नई पहचान मिलने वाली है. यह पहचान यहां की गुणवत्ता से भरपूर पारंपरिक मक्की से मिलेगी. मक्की की पारंपरिक किस्मों की खेती के जरिए उनका संरक्षण करने वाले सलूणी सफेद मक्का संगठन की सोच और प्रयासों के साथ जिला प्रशासन के सहयोग से सलूणी की मक्की की पारंपरिक किस्मों को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग यानी भौगोलिक सूचक पंजीकरण मिलने की उम्मीद पूरी होने वाली है.
एसडीएम किरण भडाना की ईटीवी भारत से खास बातचीत
इस बारे में सलूणी की एसडीएम किरण भडाना ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि जिला प्रशासन को सलूणी सफेद मक्का संगठन से मक्की की इन पारंपरिक किस्मों की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्ताव मिला था. प्रस्ताव को सभी अध्ययनों और तथ्यों के साथ हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के पेटेंट इनफार्मेशन सेंटर को प्रेषित किया था. इस मामले को अब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पंजीकरण के लिए चेन्नई स्थित रजिस्ट्रार के कार्यालय को भेज दिया गया है. पूरी उम्मीद है कि आने वाले कुछ ही समय में सलूणी घाटी में किसानों ने पीढ़ियों से उगाई जा रही मक्की की पारंपरिक किस्मों को जीआई टैग मिलेगा.
इनमें हच्छी कुकड़ी यानी सफेद मक्की, रत्ती और चिटकु मक्की शामिल हैं. दशकों से यह किसान फसल दर फसल बीजों को सहेज कर अगली बुवाई के लिए संरक्षित रखते आ रहे हैं. भौगोलिक सूचक पंजीकरण प्राप्त होने से मक्की की इन किस्मों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष पहचान मिलने वाली है. हिमाचल प्रदेश के कुछ उत्पादों को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है.