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मणिमहेश के लिए निकली छड़ी यात्रा, जानिए क्या है इस यात्रा का इतिहास

मणिमहेश डल झील में होने वाले शाही स्नान के लिए दशनाम अखाड़ा चंबा से भव्य शोभा यात्रा के साथ छड़ी यात्रा शुरू हो गई है. इस छड़ी यात्रा में स्थानीय साधु महात्माओं के साथ ही देश के विभिन्न प्रांतों से आए संत मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं.

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Published : Sep 1, 2019, 3:29 PM IST

Chaaddi yatra for manimahesh

चंबा: मणिमहेश डल झील में होने वाले शाही स्नान के लिए दशनाम अखाड़ा चंबा से भव्य शोभा यात्रा के साथ छड़ी यात्रा का शुभारंभ हुआ है. इस छड़ी यात्रा की अगुवाई छड़ीबरदार वदशनाम अखाड़ा चंबा के महंत यतिंद्र गिरी कर रहे हैं. इस दौरान मुख्यातिथि के रूप में डीसी विवेक भाटिया ने दशनाम अखाड़ा चंबा स्थित भगवान दतात्रेय महाराज के मंदिर में विधिवत रूप से पूजा अर्चना की.

इस छड़ी यात्रा में स्थानीय साधु महात्माओं के साथ ही देश के विभिन्न प्रांतों से आए संत मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं. यह छड़ी यात्रा लगभग एक सप्ताह का पैदल सफर करके मणिमहेश डल झील पहुंचेगी और 6 सितंबर को होने वाले शाही स्नान के शुभारंभ पर पवित्र डल झील में छड़ी को स्नान करवाया जाएगा.

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बता दें कि विधिवत्त पूजा अर्चना के पश्चात दशनामी अखाड़ा से शोभायात्रा जनसाली बाजर परिसर से गुजरती हुई लक्ष्मीनाथ मंदिर पहुंची जहां पूजा के बाद कुछ देर आराम करके अपने आगामी रात्रिपड़ाव राधा कृष्ण मंदिर जुलाकड़ी की ओर कूच किया. इस दौरान पवित्र छड़ी यात्रा के दर्शन के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने शीश नवाया.

दशनाम अखाड़ा चंबा की अपनी एक परंपरा व इतिहास है. राजस्वी काल से ही चंबा जिला में दशनाम अखाड़ा को बसाया गया था जब राजा शाहिल वर्मन द्वारा चंबा नगर को बसाया गया उस समय भगवान विष्णु की मूर्ति बनाने के लिए संगमरमर की जरूरत पड़ी थी. संगमरमर लेने के लिए राजा ने अपने बेटों को विंद्याचल भेजा, लेकिन रास्ते में ही उन्हें लूट कर मार दिया गया. जिसके बाद राजा ने अपने छोटे बेटे यूवाकर वर्मन को भेजा, लेकिन उसके साथ भी वही घटनाक्रम हुआ जो उसे भाइयों के साथ हुआ था.

वहां पर दशनाम अखाड़े के साधुओं ने राजा के बेटे की सुरक्षा कर संगमरमर को चंबा पहुंचाया और यहां पर भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाई गई जिसे लक्ष्मी नारायण मंदिर में रखा गया बाद में उसे दशनाम अखाड़ा में स्थापित किया गया. उसके बाद से दशनाम अखाड़ा स्थापित किया गया है और छड़ी की परंपरा भी तभी से चली आ रही है.

दशनाम अखाड़ा चंबा के महंत यतिंद्र गिरी ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और चम्बा के राजा भी इस परंपरा को बखूबी निभाते थे. चम्बा के 1000 वर्ष पुराने इतिहास में भी इस छड़ीयात्रा का जिक्र किया गया है. उन्होंने कहा कि छड़ी यात्रा 1 सितंबर को राख से दुगेर्ठी के लिए रवाना होगी. रात्रि पड़ाव के बाद छड़ी यात्रा 2 सितंबर की सुबह दुर्गठी से भरमौर के लिए प्रस्थान करेगी. वहां चौरासी मंदिर भरमौर में रात्रि ठहराव के बाद आगे की यात्रा के लिए छड़ी 3 सितंबर को भरमौर से हड़सर के लिए कूच करेगी.

हड़सर पवित्र स्थल पर पड़ाव डालने के बाद यात्रा 4 सितंबर को हड़सर से धनछौ के लिए रवाना होगी. धनछौ में छड़ी रात्रि पडाव डालने के बाद 5 सितंबर को मणिमहेश डलझील की ओर बढ़ेगी जहां रात्रि विश्राम के बाद 6 सितंबर राधाष्टमी के दिन सुबह चार बजे ब्रम्ह मुहूर्त में दशनाम की छड़ी को पवित्र डल झील में डुबकी लगवाई जाएगी जिसके बाद राधाष्टमी के स्नान में श्रद्धालु भाग लें सकेंगे.

एसडीएम चंबा दीप्ति मंढोत्रा ने बताया कि आज परंपरागत ढंग से छड़ी को दशनाम अखाडा से मणिमहेश के लिए रवाना किया गया है और रात में राधा कृष्ण मंदिर में आराम किया जाएगा. उन्होंने कहा कि दशनाम अखाड़ा को एक मदद के तौर पर धनराशि दी जाती है. साथ ही उनके हर पड़ाव पर सुरक्षा का इंतजाम किया जाता है.

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