बिलासपुर: दशकों से गोविंद सागर झील में जलमग्न हुए पुराने मंदिर रंगनाथन, मुकेश्वर अपने अस्तिव के लिए जंग लड़ रहे हैं. हालांकि भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आई और कई चली गई, लेकिन हर बार जिला के पौराणिक मंदिरों को लेकर सियासत ही हुई है.
'देवभूमि' के इस जिला में ना भगवान बस पाए और न इंसान, पौराणिक मंदिरों को आज भी जल समाधि खत्म होने का इंतजार - गोविंद सागर झील हिमाचल
मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर आज भी अपने अस्तित्व की वाट टोह रहे हैं. गोविंद सागर झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है.
मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर आज भी अपने जीर्णोद्धार की वाट टोह रहे हैं. गोविंद सागर झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है. कुछ समय पहले जब ये मंदिर पानी से बाहर आए तो केंद्र की टीम ने सर्वे किया और वापस चली गई. टीम को गए हुए तकरीबन 2 से 3 महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक ना ही इसकी रिपोर्ट आई है और ना ही आगामी काम की शुरूआत की गई है.
साहित्यकार विजय कुमार ने बताया कि जिला के जो ऐतिहासिक मंदिर है, उनको स्थानांतरित करने के लिए प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने बहुत प्रयास किए हैं, लेकिन सारा मामला फाइलों से बाहर नहीं निकला है. उन्होंने बताया कि हर बार यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम जाती है और सर्वेक्षण करती है. वहीं, अगर वास्तव में ये मंदिर स्थानांतरित हो जाते हैं तो पर्यटन की दृष्टि से बिलासपुर एक आकर्षण का केंद्र बनेगा.