बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश के चार जिलों की सीमाओं पर लगी 800 मेगावाट की कोलडैम बिजली परियोजना (Koldam Power Project in Bilaspur) से करोड़ों लोगों को लाभ मिल रहा है, लेकिन इस बांध के लिए अपनी जमीनें कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों को आज भी सरकार मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा पाने में नाकाम साबित हुई है. आलम यह है कि परियोजना लगने के 20 साल बाद भी विस्थापितों के गांव तक पक्की सड़क नहीं बन पाई (Govt unable to provide facilities to Koldam displaced) है. इतने साल बीत जाने के बाद भी क्षेत्र के हजारों विस्थापित महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
मूलभूत सुविधाओं से महरूम विस्थापितों ने शनिवार को जमथल में धरना प्रदर्शन किया. जिसमें मुख्य रूप से जिला परिषद अध्यक्ष मुस्कान मौजूद रही. इस दौरान उन्होंने जिला प्रशासन के खिलाफ काफी रोष जताया. जिला परिषद अध्यक्ष ने इस अवसर पर विस्थापितों की कॉलोनी का जायजा भी लिया. इस दौरान मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने विस्थापितों की कॉलोनी की दुर्दशा का हाल (Koldam displaced People colony bad conditon) बताया. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा एनटीपीसी को भी कई बार पत्र लिखे गया हैं कि वे यहां आए और स्थिति का जायजा लें लेकिन उनके द्वारा विस्थापितों की कोई सुध नहीं ली गई.
वहीं, विस्थापितों (Koldam Power Project displaced People Protest) का कहना है कि अब बिजली उत्पादन शुरू हो गया है लेकिन रॉयल्टी मिलना तो दूर आज सरकार द्वारा उनकी सुख सुविधा को भी दरकरार कर दिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि एनटीपीसी कोलडैम के कार्यालय और उनकी सड़कें चकाचक है, लेकिन विस्थापितों की कॉलोनी की दुर्दशा इतनी भयावह है कि लोग अपनी जान को हथेली में रखकर जीवन जीने को विवश हैं.