बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश का विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. ऊंची पहाड़ियों पर बसा मां का यह मंदिर बड़ा ही अलौकिक और रमणीक है. कहते हैं कि माता सती के नेत्र यहां गिरे थे, इसी लिए इस मंदिर का नाम माता श्री नैना देवी मंदिर पड़ा. हालांकि, इस मंदिर में श्रद्धालु अपनी आंखों की रोशनी को ठीक करने के लिए आंखों की सलामती के लिए माता के दरबार में चांदी और सोने के नेत्र चढ़ाते हैं. कहते हैं कि मां नैना देवी श्रद्धालुओं की आंखों की रोशनी ठीक कर देती है.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब माता सती ने हठ करके अपने पिता दक्ष प्रजापति की महायज्ञ में गई और वहां पर शिव भगवान का अपमान देखकर माता सती अग्नि कुंड में कूद गई और जब भगवान शिव को इसका पता चला तो शिव भगवान बहुत क्रोधित हुए और वहां पहुंचकर माता सती के अर्ध जले शरीर को त्रिशूल पर उठाकर पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण करने लगे और विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा माता के अंगों को छिन्न-भिन्न कर दिया और जहां-जहां भी माता सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई माता श्री नैना देवी के मंदिर में माता सती के नेत्र गिरे इसलिए इस मंदिर का नाम मां नैना देवी पड़ा.
हालांकि, एक प्राचीन मान्यता और भी है कि जब माता श्री नैना देवी ने महिषासुर का वध किया था तो उस समय देवताओं ने खुश होकर 'जय मां नयने महिषासुर मर्धनि' उद्घोष किया था इस वजह से भी देवी मां का नाम मां नैना देवी पड़ा. माता नैना देवी के दरबार में वर्ष भर लाखों की संख्या में श्रद्धालु एवं तक पहुंचते हैं माता जी के मंदिर के बजट की बात करें तो मंदिर का बजट लगभग 86 करोड़ रुपए का है.
लाखों श्रद्धालु यहां माताजी के मंदिर में पहुंचते हैं मां के दीदार करते हैं. इस मंदिर में माता के दो चमत्कार आज भी विद्यमान है, जिनमें पहला माता का चमत्कार प्राचीन हवन कुंड है. कहते हैं कि यह हवन कुंड दुनिया का पहला हवन कुंड हैं जो ज्वलंत हैं. जिसमें सब कुछ बीच में ही समा जाता है शेष निकालने की जरूरत नहीं पड़ती, जितना मर्जी हवन करते जाओ शेष बीच में ही समा जाता है.