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बिलासपुरः कांग्रेस ने भारत-चीन सीमा पर शहीद हुए जवानों को दी श्रदांजलि

शहीदों को श्रद्धांजलि देने के दौरान कांग्रेस के सचिव राजेश धर्माणी ने कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद पर देश के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के अलग-अलग बयान आए हैं. राजेश धर्माणी ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा चीन को क्लीन चिट देना निंदनीय है.

Congress paid tribute to soldiers
Congress paid tribute to soldiers

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Published : Jun 26, 2020, 8:05 PM IST

बिलासपुरःअखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आह्वान पर गुरुवार को ब्लॉक कांग्रेस कमेटी ने स्वतंत्रा सेनानी स्मारक घुमारवीं में भारत-चीन सीमा पर शहीद हुऐ वीरों के सम्मान में दीप जलाए और पुष्प अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई.

इस मौके पर कांग्रेस के सचिव राजेश धर्माणी ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के अलग-अलग बयान आए हैं, उस पर भी देश के प्रधानमंत्री को राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए. राजेश धर्माणी ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा चीन को क्लीन चिट देना निंदनीय है.

उन्होंने कहा जिस तरह चीन ने 1962 में भारत को धोखा दिया था, उसी तरह चीन ने अब भी धोखा दिया है. राजेश धर्माणी ने सरकार से मांग की है कि चीन से आने वाले आयात पर प्रतिबंध लगाया जाए और भारत में चीन ने जिन कंपनियों के ठेके लिए हुए हैं, उन्हें भी बंद किया जाए.

वीडियो रिपोर्ट.

इस मौके पर जिला बिलासपुर कांग्रेस अध्यक्ष अंजना धीमान ने कहा लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर शहीद हुए जवानों के साथ कांग्रेस की संवेदना है और शत-शत नमन कर श्रद्धांजलि देते हैं, जिन वीरों ने देश की सुरक्षा के लिए अपना जीवन तक बलिदान कर दिया.

बता दें कि 15-16 जून को लद्दाख के गलवान घाटी में एलएसी पर हुई इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिकों शहीद हुए थे. गलवान नदी, जो अपने मूल स्थान से काराकोरम में 80 किलो मीटर पश्चिम में निकलते हुए अक्साई चिन और पूर्वी लद्दाख से होकर श्योक नदी में मिलती है.

यह क्षेत्र में रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है. यह ही कारण है कि सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है. एलएसी के पास गलवान घाटी एक ऐसी जगह का नाम है, जहां हिमालयी पहाड़ों से नीचे की ओर एक धारा बह रही है, जिसे गलवान कहा जाता है.

गौरतलब है कि इस जगह का नाम गुलाम रसूल शाह उर्फ गलवान के नाम पर रखा गया था, जो कश्मीरी मूल के थे और उनके पूर्वज, कर्रा गलवान, तत्कालीन डोगरा शासकों के डर और दमन के कारण, कश्मीर से भाग गए थे और बाल्टिस्तान में बस गए थे.

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