यमुनानगर: जिले में लम्पी वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यमुनानगर में अब तक करीब 9 हजार पशु लंपी वायरस की चपेट में आ चुके हैं. जिले का कोई भी गांव इस वायरस से अछूता नहीं है. केवल यमुनानगर में लंपी वायरस से मौत(Lumpy virus death in Yamunanagar)का आंकड़ा अभी तक 14 हो गया है. जिला पशुपालन एवं डेयरी विभाग के मुताबिक 4300 पशु अब तक ठीक हो चुके हैं.
हरियाणा में जहां लंपी वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है तो वहीं यमुनानगर जिला इस वायरस के मामले में टॉप पर है. यमुनानगर में लंपी वायरस (Lumpi virus in Yamunanagar) का कहर हर गांव तक पहुंच चुका है. अब तक करीब 9 हजार पशु इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 14 ही पशुओं की अब तक मौत हुई है. इस बारे में पशुपालन एवं डेयरी विभाग के एसडीओ सतबीर ने बताया कि ये वायरस मक्खी और मच्छरों की वजह से फैल रहा है. इसलिए पशुपालकों को सलाह दी जा रही है कि अपने पशुओं का मक्खी मच्छरों से बचाव करें. यदि किसी पशु में ये बीमारी आई है तो उसे अन्य पशुओं से अलग कर दें ताकि ये आगे ना फैल सके.
यमुनानगर में लंपी वायरस का सबसे ज्यादा कहर, अब तक 14 पशुओं की मौत यमुनानगर पशुपालन विभाग के एसडीओ ने बताया कि जो पशु इस वायरस की चपेट में हैं, उनका दूध किसी तरह से हानिकारक नहीं है. जिस तरह सामान्य तौर पर पहले भी उबाल कर दूध को इस्तेमाल कर रहे थे उसी तरह अब भी दूध का इस्तेमाल कर सकते हैं. दूध कम करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि लंपी ही नहीं बल्कि पशु किसी भी बीमारी की चपेट में आने पर दूध कम देता है. इसलिये पशुपालकों को घबराने की जरूरत नहीं है. 14 दिन में बीमार पशु ठीक हो रहे हैं. पशुओं के ठीक होने पर दूध की रिकवरी हो जाती है.
हरियाणा में कुल 62.92 लाख गोजातीय (भैंस और गौवंश) पशुओं में से 19.32 लाख गौवंश हैं. अधिकारी ने बताया कि इस वायरस के लिए वैक्सीन आ चुकी है लेकिन अभी उसे नहीं लगाया जा सकता. क्योंकि हर गांव में ये वायरस फैला हुआ है और जब तक उच्च अधिकारियों के आदेश नहीं आते तब तक वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती. उन्होंने कहा कि हाल ही में जिन पशुओं की मौत हुई है, उसका कारण केवल लंपी वायरस नहीं है बल्कि वे पहले से ही किसी ना किसी बीमारी से ग्रसित थे. यमुनानगर जिले में सबसे पहला केस रादौर में पाया गया था जिसके बाद ये वायरस दूसरी जगह फैला.
लंपी स्किन डिजीज की वैक्सीन-हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने लंपी स्किन डिजीज की वैक्सीन (Lumpy skin disease Vaccine) तैयार कर ली है. ये पहली स्वदेशी वैक्सीन है. लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) सबसे पहले अफ्रीका में पाई जाती थी. मगर वर्ष 2019 में भारत आई और इसका सबसे पहला मामला ओडिशा में मिला था. ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन (गावी) की रिपोर्ट कहती है कि लंपी त्वचा रोग कैप्रीपोक्स वायरस के कारण होता है.
सरकार ने जारी की एडवायजरी- पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने बताया कि विभाग हरियाणा में लंपी स्किन बीमारी (Lumpy skin disease in Haryana) की रोकथाम के लिए चिंतित हैं क्योंकि यह एक वायरल बीमारी है. इसके लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब व राजस्थान के मुकाबले हरियाणा में यह बीमारी कम फैली हुई है. इस बीमारी के संबंध में हमने एडवाईजरी जारी कर दी है कि पशुओं का आवागमन बंद हो, पशु मेला लगाना बंद हो, मच्छर-मक्खी की दवाइयों का छिड़काव हो. और अंतर्राज्यीय पशुओं के आवागमन को रोका जाए.
लंपी स्किन बीमारी कहां से आई-जेपी दलाल ने सदन में कहा कि लंपी स्किन बीमारी (एलएसडी) एक वायरल रोग है. यह वायरस पॉक्स परिवार का है. लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है. माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई. साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं. देश में प्रमुख प्रभावित राज्यों में गुजरात, राजस्थान और पंजाब हैं. हरियाणा राज्य में यह रोग अभी प्रारंभिक चरण में है और पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा इसके नियंत्रण और रोकथाम के उपाय किए जा रहे हैं.
लंपी स्किन बीमारी से गौवंश को खतरा-लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को प्रभावित करती है. देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक है. इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत है. रोग के लक्षणों में बुखार, दूध में कमी, त्वचा पर गांठें, नाक और आंखों से स्राव आदि शामिल हैं. रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं. इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशु के नाक से स्राव, दूषित फीड और पानी से भी हो सकता है.
लंपी स्किन बीमारी के उपचार एवं रोकथाम- वायरल बीमारी होने के कारण प्रभावित पशुओं का इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है. बीमारी की शुरूआत में ही इलाज मिलने पर इस रोग से ग्रस्त पशु 2-3 दिन के अन्तराल में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है. किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण है. प्रभावित जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए.
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