यमुनानगर: जगाधरी विधानसभा सीट यमुनानगर जिले में आती है. जगाधरी का बर्तन उद्योग 100 साल से ज्यादा पुराना है और जगाधरी में बने बर्तनों की मांग विदेशों में भी काफी है. ये सीट रादौर, शाहबाद, यमुनानगर, हिमाचल प्रदेश के साथ और उत्तर प्रदेश की ओर यमुना नदी के साथ लगती है.
बसपा का रहा है दबदबाइस सीट से 2009 में विधायक बनने वाले अकरम खान विधानसभा में उपाध्यक्ष रहे थे. वहीं 2014 में बने नए विधायक कंवरपाल गुर्जर हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष बने थे. यमुनानगर जिले की ये सीट प्रदेश की उन चंद सीटों में से है जिन पर बहुजन समाज पार्टी की स्थिति मजबूत रहती है. पिछले 6 चुनावों में बसपा यहां या तो जीती है या दूसरे स्थान पर रही है. इस सीट पर दलित मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं. लेकिन हरियाणा बनने के बाद से यहां विधायक सामान्य या पिछड़े वर्ग से ही बनते आए हैं. 1996 से पहले तो इस सीट पर ब्राह्मण, बनिया या पंजाबी नेताओं का ही कब्जा था. 1996 और 2005 में यहां से सुभाष चंद्र कंबोज (1996-हविपा, 2005-कांग्रेस), 2000 में बिशन लाल सैनी (बसपा), 2009 में अकरम खान (बसपा) और 2014 में कंवरपाल गुर्जर (बीजेपी) विधायक बने. हरियाणा में 2014 में बसपा की रैली में मायावती और अन्य बसपा नेता. मुस्लिम और दलित बहुल सीट है जगाधरीइस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है. इस सीट पर 2014 का विधानसभा चुनाव संतुलित स्थितियों में हुआ था. जहां विधायक बसपा का था, सरकार कांग्रेस की और लहर भाजपा की थी. 2008 परिसीमन में छछरौली विधानसभा सीट खत्म कर उसका ज्यादातर क्षेत्र जगाधरी सीट में मिल गया था. छछरौली सीट मुस्लिम और दलित बहुल सीट थी और वहां से 1977 के बाद से मुस्लिम या गुर्जर विधायक ही बनते थे. 1991 में जब से बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में चुनाव लड़ना शुरू किया है तब से ही पार्टी का इन दोनों सीटों पर अच्छा प्रभाव रहा. जगाधरी सीट पर तो 1991 से 2014 तक हर चुनाव में बसपा पहले या दूसरे स्थान पर रही. 2014 में बसपा ने जताया था अपने विधायक पर भरोसा2014 में भी बसपा ने एक बार फिर क्षेत्र पर पुरानी पकड़ रखने वाले अपने इकलौते विधायक अकरम खान को ही टिकट दी. अकरम खान के पिता मोहम्मद असलम खान और दादा अब्दुल राशिद खान इस क्षेत्र की जानी-मानी राजनीतिक शख्सियत रहे हैं. 1996 में अकरम खान ने कांग्रेस से टिकट लेकर छछरौली सीट से चुनावी जीवन की शुरुआत करनी चाही, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. खान ने वह चुनाव आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और 26 साल की उम्र में विधायक बन गए. 1996 में छछरौली में जनसभा के दौरान अकरम खान. 2014 तक अकरम खान रहे हैं बड़े पदों परअकरम खान तब बंसीलाल सरकार में हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन और चौटाला सरकार में राज्यमंत्री रहे. 2000 में छछरौली से भाजपा के कंवरपाल से चुनाव हारने के बावजूद ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और हारट्रोन का चेयरमैन बनाया. अकरम खान ने 2005 में इनेलो की टिकट पर छछरौली से ही चुनाव लड़ा लेकिन बसपा के अर्जुन सिंह के हाथों हार गए. 2007 में अकरम खान ने बसपा ज्वाइन कर ली और छछरौली सीट खत्म हो जाने के चलते 2009 में जगाधरी से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बन गए. तब अकरम खान को हरियाणा विधानसभा का उपाध्यक्ष बनाया था और 1966 के बाद हरियाणा विधानसभा के वो पहले मुस्लिम उपाध्यक्ष बने थे. पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस विधायक रणदीप सुरजेवाला के साथ अकरम खान. 2014 में खान को मिली थी करारी शिकस्तविधानसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 40 सीटें होने की वजह से निर्दलीय के साथ-साथ बसपा के इस इकलौते विधायक की भी अच्छी पूछ रही और उन्हें विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनाया गया. 2014 के विधानसभा चुनाव में अकरम खान मुश्किल चुनौतियों से घिरे थे क्योंकि उनके क्षेत्र के काम अटके पड़े थे. लंबे वक्त तक यमुना क्षेत्र में खनन बंद होने की नाराजगी भी अकरम खान को झेलनी पड़ी और उन्हें चुनाव में करारी शिकस्त मिली. अकरम खान अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इनेलो का प्रदर्शन भी रहा खराबइनेलो ने जगाधरी सीट पर अपने मजबूत नेता डॉ. बिशन लाल सैनी को उतारा था. सैनी 2000 में जगाधरी सीट से बसपा की टिकट पर विधायक रहे थे. 2005 में वे जगाधरी सीट से इनेलो की टिकट पर चुनाव हार गए थे. जिसके बाद 2009 में उन्होंने सीट बदलकर रादौर से चुनाव लड़ा और एमएलए बने. राजनीतिक घरानों से बाहर बहुत कम नेता ऐसे होते हैं जो एक से ज्यादा क्षेत्र में कामयाब हो सके. 2014 में डॉ. सैनी का जगाधरी सीट पर प्रदर्शन काफी खराब रहा और वे 10 फीसदी वोट भी नहीं ले पाए. इनेलो को यहां 2009 में सिर्फ 14.26 प्रतिशत ही वोट मिले थे लेकिन 2014 में तो यह घटकर 8.93 प्रतिशत रह गए. डॉ. सैनी भी अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. कांग्रेस की हालत हो गई थी बुरीजगाधरी सीट पर कांग्रेस ने भूपाल सिंह भाटी को टिकट दिया था. भूपाल सिंह कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री रहे थे और कुमारी सैलजा व भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों के खेमों में संतुलन बनाने की कोशिश रखते थे. चुनाव में वे हुड्डा के उम्मीदवार के तौर पर ही देखे गए और सैलजा के कार्यकर्ता प्रचार में सक्रिय नहीं दिखे. कांग्रेस की यहां बहुत बुरी हार हुई और पार्टी के वोट 2009 में 27.52 प्रतिशत से घटकर 5.76 प्रतिशत पर आ गए. कांग्रेस यहां पांचवे स्थान पर रही थी और निर्दलीय उम्मीदवार उदयवीर सिंह भी कांग्रेस से ज्यादा वोट ले गए थे. बीजेपी ने अपने पुराने नेता को दी थी टिकटअब बात भाजपा की करें तो भाजपा ने यहां से अपने पुराने नेता कंवरपाल गुर्जर को अवसर दिया था जो 1996 से छछरौली या जगाधरी सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे. वे इससे पहले एक बार 2000 में छछरौली से विधायक रह चुके थे तब भी उन्होंने अकरम खान को हराया था जो 2009 से 2014 तक इस जगाधरी सीट से विधायक थे. 2005 में कंवरपाल ने भी छछरौली से ही चुनाव लड़ा था और बुरी तरह हार कर चौथे स्थान पर आ गए थे. मोदी लहर में लहराया था भगवा2009 में छछरौली सीट खत्म हो जाने पर कंवरपाल जगाधरी सीट पर आ गए और अच्छे वोट लेने के बावजूद तीसरे स्थान पर रहे थे. छछरौली सीट पर अकरम खान को हराने वाले कंवरपाल जगाधरी आकर उनसे हार गए थे लेकिन 2014 में उन्होंने एक बार फिर हिसाब बराबर किया और शानदार जीत हासिल की. जगाधरी उन सीटों में से है जहां भाजपा का कुछ आधार रहा है और पार्टी उम्मीदवार मुकाबले में आते रहे हैं. कंवर पाल गुर्जर ने 2009 के 24.51 प्रतिशत के मुकाबले 2014 में 44.79 प्रतिशत वोट लिए और 34 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की. इस शानदार जीत के बाद भाजपा सरकार में उन्हें हरियाणा विधानसभा का अध्यक्ष भी बनाया गया. लोकसभा चुनाव में वोट डालने के बाद अपनी पत्नी के साथ कंवरपाल गुर्जर. अब नजरें 2019 के चुनाव परये था जगाधरी सीट का लेखा जोखा. इस सीट पर वैसे तो बसपा का दबदबा रहता है लेकिन 2014 की मोदी लहर में यहां से हाथी को भी पटखनी मिली थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में जगाधरी में 84.75 मतदान हुआ था जोकि सबसे ज्यादा मतदान के मामले में राज्य में छठे नंबर पर रहा. आगामी चुनाव की स्थिति देखें तो यहां इनेलो, जेजेपी और कांग्रेस को कोई करिश्मा ही जीत दिला सकता है. वहीं बसपा यहां वापसी कर पाएगी या एक बार फिर यहां भगवा ही लहराएगा ये देखने वाली बात होगी.