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एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार, 150 यूनिट बंद, दो व्यापारियों ने की आत्महत्या

एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री इन दिनों आर्थिक मंदी की मार से जूझ रही है. इंडस्ट्री की 150 यूनिट बंद हो चुकी है. हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं.

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Published : Sep 15, 2019, 12:40 PM IST

Updated : Sep 15, 2019, 3:11 PM IST

Economic slowdown on plywood industry

यमुनानगर: एशिया की सबसे बड़ी प्लाई इंडस्ट्री का खिताब जीतने वाली प्लाई इंडस्ट्री अब बंद होने की कगार पर है. हालात ये हैं कि 150 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जिसकी वजह से हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. व्यापार में आई आर्थिक मंदी की वजह से कई व्यापारी फैक्ट्री बंद करने की सोच रहे हैं तो कई व्यापारी फैक्ट्री बंद कर चुके हैं.

एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री पर आर्थिक मंदी की मार
हालात ये हो गए हैं कि किराए पर चलने वाली फैक्ट्री कोई कम रेट पर भी लेने के लिए सामने नहीं आ रहा, आर्थिक मंदी से हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दो व्यापारी आत्महत्या कर चुके हैं, हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं. पेमेंट को लेकर आढ़ती, वुड व्यापारी और फेस विनियर व्यापारियों में तनातनी चल रही है.

आर्थिक मंदी से बंद हो जाएगी प्लाईवुड इंडस्ट्री?
यमुनानगर जिले में बोर्ड की 370 यूनिट हैं, इसके अलावा पीलिंग, आरा और चिप्पर की 800 के करीब यूनिट हैं, सभी पर मंदी की मार है. प्लाईवुड एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र चावला ने बताया कि डिमांड और सप्लाई का संतुलन इन दिनों बिगड़ा हुआ है, कच्चे माल के रेट 400 से एक हजार पर पहुंच गए, जबकि बोर्ड के रेट 36 से 38 रुपये फुट पर ही पहुंचे हैं, इसलिए प्लाईवुड व्यापारी कर्जे में डूबता जा रहा है.

क्या एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड इंडस्ट्री आर्थिक मंदी की वजह से बंद हो जाएगी?

जीएसटी और नोटबंदी जिम्मेदार!
देवेंद्र चावला ने बताया कि नोटबंदी और जीएसटी को भी व्यापारी इस कारोबार के लिए सही नहीं मानते. मंडी से लक्कड़ नकद में खरीदा जाता है, तैयार बोर्ड उधार में सप्लाई होता है, रियल स्टेट में मंदी होने की वजह से कच्चा माल ज्यादा तैयार हो गया, जो माल सप्लाई हो गया, उसकी पेमेंट नहीं मिल पा रही है. यूनिट संचालकों को आढ़तियों को भी नकद में ही पेमेंट देनी पड़ रही है.

व्यापारियों ने सरकार पर भी उठाए सवाल
चावला के मुातबिक सरकार की तरफ से लाइसेंस के लिए जो सर्वे कराया गया. उसमें अधिकारियों ने सर्वे लक्कड़ के उत्पादन की बजाए आवक पर कर दिया, सर्वे के लिए जिले में पांच टीम बनी थी, अधिकारियों के मुताबिक मंडी में ढाई लाख क्विंटल से ज्यादा कच्चा माल आता है, जबकि सच्चाई ये है कि जिले में 85 प्रतिशत कच्चा माल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब से आता है, दूसरे राज्यों को लाइसेंस मिलने पर वहां भी यूनिट खुल गई. जिसका सीधा असर उनके व्यापार पर पड़ा है.

घाटे में चल रही है प्लाईवुड इंडस्ट्री
बता दें कि जीएसटी से पहले प्लाईवुड इंडस्ट्री सरकार को 110 करोड़ रुपये का राजस्व देती थी, जो एकमुश्त हुआ करता था, जीएसटी लगने के बाद ये राजस्व साल 2018-19 में 6 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया, देवेंद्र चावला के मुताबिक मंदी की वजह से इस साल राजस्व 6 हजार के आंकड़े को भी नहीं छू पाएगा.

ये हैं प्लाईवुड व्यापारियों की मांगें
प्लाईवुड व्यापारियों के मुताबिक उनकी हालत बद से बदहाल होती जा रही है. ये व्यापार एग्रो फोरेस्ट्री का है.

  • जिस तरह किसान की फसल टैक्स मुक्त है, उसी तरह ये सुविधा इस व्यापार को मिलनी चाहिए
  • दो प्रतिशत मार्केट फीस भी सरकार को हटानी चाहिए
  • जिन लोगों ने लाइसेंस के लिए मोटी फीस दी है, उनके पैसे लौटाए जाए
  • मंदी को देखकर जो लोग व्यापार नहीं करना चाहते उनको मदद दी जाए
  • बिना सिक्योरिटी के लोन दिया जाए, ग्लू के लिए खाद और बिजली बिल के दरों में राहत दी जाए.

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व्यापारियों के मुताबिक तैयार माल की डिमांड कम है, व्यापारियों की मोटी पेमेंट रुकी है, कच्चे माल के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है, 400 रुपये में बिकने वाला पापुलर 1 हजार पर पहुंच गया, आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण 150 फैक्टरी बंद पड़ी हैं, जो फैक्टरी पहले 24 घंटे चलती थी, वो अब आठ घंटे चल रही हैं.

Last Updated : Sep 15, 2019, 3:11 PM IST

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