यमुनानगर: प्लाईवुड इकाइयों में डिमांड ना होने कारण लकड़ी की खपत टूट गई है. मंडियों में हर दिन पहुंचने वाली 400-500 ट्रॉलियों की संख्या सिमटकर 10-20 रह गई है. इससे ना केवल आढ़ती और उत्पादक किसान सकते में है. बल्कि सरकार को भी हर सप्ताह 15 लाख से अधिक के राजस्व का घाटा हो रहा है. 500 से अधिक आढ़ती और हजारों कामगार बेरोजगार हो चुके हैं.
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यमुनानगर की प्लाईवुड इकायों में ना केवल प्रदेश के विभिन्न जिलों बल्कि उत्तर प्रदेश, हिमाचल और पंजाब राज्यों से भी लकड़ी पहुंचती है. यमुनानगर और जगाधरी में दो लक्कड़ मंडियां हैं. सामान्य दिनों में यमुनानगर में 300-400 और जगाधरी में 100-150 ट्रॉली की आवक होती है. अब हालात ये हैं कि यमुनानगर में 10-12 और जगाधरी में ट्रॉलियों की संख्या घटकर 4-5 रह गई है.
आवाक ना होने से बंद पड़ा कारोबार
आवक ना होने के कारण आढ़ती भी परेशान हैं. कारोबार बंद है. यमुनानगर में प्लाईवुड कोराबार की प्रेस, पीलिग और आरा की एक हजार से अधिक यूनिट हैं. इनमें करीब डेढ़ लाख श्रमिक काम करते हैं.
यमुनानगर-जगाधरी की अधिकांश प्लाईवुड इकाइयां बंद हैं. इनमें लकड़ी की खपत नहीं रही. नगर निगम एरिया में सरकार के आदेशों पर इकाइयां बंद हैं, जबकि निगम एरिया से बाहर बंद होने के कई कारण बन रहे हैं. मार्केट में वुड प्रोडक्ट की खपत नहीं रही. कारोबारी बाहर माल भेजने से कतरा रहे हैं. क्योंकि पहले ही लॉकडाउन के चलते पेमेंट फंसी पड़ी है. भारी संख्या में श्रमिक अपने प्रदेश लौट चुके हैं.
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टिबर आढ़ती संगठन का कहना है कि लकड़ी की खपत घट जाने से मंडियों में आवक ना के बराबर रह गई है. ना केवल आढ़ती बल्कि मंडी से जुड़ा हर व्यक्ति प्रभावित हो रहा है, क्योंकि दोनों मंडियों से प्रत्यक्ष व परोक्ष रुप हजारों लोग जुड़े हुए हैं. नगर निगम एरिया में फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं, जबकि अधिकांश फैक्ट्रियां निगम एरिया में ही हैं. व्यापारियों ने कहा कि अगर सरकार सभी फैक्ट्रियों को चलाने की अनुमति दे तो आवक में सुधार आ सकता है. नहीं नुकसान कहीं ज्यादा होगा.