यमुनानगर जिले के दयालगढ़ गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. यमुनानगर: यमुनानगर विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक घनश्याम अरोड़ा ने दयालगढ़ गांव को गोद लिया हुआ है. इस गांव के हालात बेहद खराब हैं. विधायक अरोड़ा ने पहले प्लान में इस गांव को गोद लिया था. गांवों में सुविधाओं की बात तो छोड़िए, ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतें भी यहां पूरी नहीं हो रही है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर गांवों को गोद लेने का क्या फायदा, जब गांवों का विकास ही नहीं हो.
यमुनानगर जिले के गांव दयालगढ़ के हालात बदतर हैं. यहां अभी पेयजल की किल्लत है और गर्मियों के दिनों में यह और बढ़ जाएगी. गांव के हालात देखकर इसे हरियाणा के पिछड़े हुए गांवों में शुमार किया जा सकता है, लेकिन इस गांव की कायापलट करने के लिए यमुनानगर से बीजेपी विधायक घनश्याम अरोड़ा ने इसे गोद लिया था. एमएलए साहब ने उस दौरान स्पेशल ग्रांट से इसका विकास करने की ठानी थी.
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आज हालात ये हैं कि ग्रामीण पीने के पानी को भी तरस रहे हैं. गांव के लोगों का कहना है कि पानी का जलस्तर बेहद नीचे चला गया है, जिससे उन्हें बहुत परेशानी हो रही है. गांव की धर्मशाला को अस्थाई आंगनवाड़ी में तब्दील कर दिया गया है. अगर गांव के किसी व्यक्ति को कोई कार्यक्रम कराना हो, तो मजबूरी में उन्हें यहां कराना पड़ता है. आज भी गांव की गलियां गंदगी से अटी पड़ी है.
सड़कों पर और घरों के बाहर कचरे के ढेर लगे हुए हैं, जिनसे आने वाली बदबू के कारण राहगीर परेशान हैं. इस पर बीजेपी विधायक घनश्याम अरोड़ा कहते हैं कि एक गोद लिए गांव के लिए जो ग्रांट आई थी, वो गांव के विकास पर खर्च की गई है. अब इन व्यवस्थाओं को संभालने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत और गांव के सरपंच की है. वहीं आम आदमी पार्टी ने विधायक घनश्याम अरोड़ा के गोद लिए गांवों को बड़ा मुद्दा बना दिया है.
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आप पार्टी के नेता पूरे गांव में घूमकर गांव के विकास को लेकर सवाल उठा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के नेता ललित त्यागी ने एमएलए घनश्याम अरोड़ा से गांव के विकास के लिए दिए गए बजट की जानकारी मांगी है. इस बजट को गांव में कहां लगाया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में मंत्री, सांसद और विधायक को एक-एक गांव गोद लेने की अपील की थी. जिसे माननीयों ने स्वीकारा भी, लेकिन उन्होंने जो सपना देखा, वो हकीकत नहीं बन पाया.गांव की आबादी करीब 20 हजार है और 2 हजार 700 वोटर्स हैं. प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी भी डेढ साल का वक्त बाकी है. अब देखना होगा कि गांव की तस्वीर में कितना बदलाव आता है.