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प्रवासी मजदूरों पर लॉकडाउन की मारः कुंडली में रोते हुए प्रवासियों ने कहा 'हमें भिजवा दो हमारे घर' - लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को परेशानियां सोनीपत

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन ने गरीब प्रवासी मजदूरों के सामने खाने का संकट पैदा कर दिया है. मजदूर पैदल कई सौ किलोमीटर की यात्रा कर अपने घर जा रहे हैं, वहीं गरीब प्रवासी मजदूरों के परिवार के लिए खाना और दवाईयां मिलना भी मुश्किल हो गया है. ऐसी ही तस्वीर सामने आई है सोनीपत के कुंडली औद्योगिक क्षेत्र से...

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Published : Mar 29, 2020, 5:54 PM IST

सोनीपतःकरोना वायरस की महामारी को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया है. जिसके चलते लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं, पूरे देश में यातायात ठप है, कंपनियां बंद हैं, बाजार बंद है. जिसके चलते गरीब और दिहाड़ी मजदूरों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

वहीं अपने घर और गांव से दूर देश के किसी दूसरे प्रदेश में रोजी-रोटी के लिए रह रहे प्रवासी मजदूरों और गरीब परिवार को हालत इस वक्त ज्यादा ही खराब है. काम बंद होने के चलते इन परिवारों के लिए खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे परिवारों के बड़े लोगों के साथ-साथ बच्चों को भी भूखे पेट सोना पड़ रहा है.

जिसके चलते प्रवासी मजदूर और परिवार पलायन को मजबूर हैं और गाड़ी और यातायात के साधन बंद होने के चलते कई सौ किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं. लेकिन कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकारें इन लोगों को कहीं आने जाने से भी रोक रही हैं. जिसके चलते इनकी दिक्कते और बड़ गई हैं.

प्रवासी मजदूरों पर लॉकडाउन की मारः कुंडली में रोते हुए प्रवासियों ने कहा 'हमें भिजवा दो हमारे घर'

सोनीपत के कुंडली में भयावह तस्वीर

सोनीपत के कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में ईटीवी भारत ने ऐसे ही परिवारों और मजबूर लोगों की हालात का जायजा लिया और जो बातें उन मजबूर परिवार की महिलाओं ने बताई वो किसी की भी आंखों में आंसू ला देने के लिए काफी हैं.

यूपी की मथुरा की रहने वाली उषा का कहना है कि

महंगाई दोगुनी हो गयी है, लोग एक-दूसरे को मार रहे हैं. बच्चे बीमार हैं, दवाईयां नहीं मिल रही हैं और अगर मिल भी रहीं हैं तो दोगुने रेट पर जिन्हें खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं.

यूपी की ही देवरिया की रहने वाली सुनीता तो अपनी दास्तां सुनाते हुए फफक-फफक कर रो पड़ी, सुनीता कहती हैं कि

हमारे पास खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है, खर्चे के लिए पैसे भी नहीं हैं. गाड़ियां बन्द हैं, जाने भी नहीं दिया जा रहा, किराया भी नहीं है. हमारे घर में आटा भी नहीं है, कोई 100 रुपए उधार भी नहीं दे रहा है. लोग भूखे पेट रहने को मजूबर हैं.

बिहार की रहने वाली उर्मिला की भी दास्तान कुछ कम दहलाने वाली नहीं है. उर्मिला कहती हैं कि उनके बच्चे रात भर भूखे रहे और सुबह होने पर भी उन्हें भूखे पेट ही रहना पड़ रहा है.

बिहार की ही रहने वाली लक्ष्मी देवी भी भावुक होकर बोली कि

ना कमा सकते हैं, ना खा सकते हैं. कारखाने बन्द हो चुके हैं. हम भूखे मर रहे हैं. सब्जियों के दाम बढ़ चुके हैं, हमारी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है.

मजबूरों की हालत पर किसी की नजर नहीं

ये हालात कमोवेश हर उस इलाके की है. जहां पर ऐसे दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं. दिन-रात सड़कों पर सरकारी अधिकारियों की गाड़ियां सायरन बजाते हुए घूम रहीं हैं. मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के आला अधिकारी तक दावा कर रहे हैं कि प्रवासी मजदूरों को कोई दिक्कत नहीं होने दी जाएगी. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. राशन से लेकर दूध, सब्जी और दवाईयों को दोगुने रेट पर बेचा जा रहा है. सरकारी बाबूओं की गाड़ियां सांय-सांय करती हुई सड़कों पर सरपट दौड़ रही हैं, लेकिन इन लोगों का दर्द समझने के लिए ना सरकारी बाबुओं के पास टाइम और ना ही चुने हुए जन प्रतिनिधियों के वक्त है.

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