हरियाणा

haryana

ETV Bharat / state

बरोदा के अखाड़े में राजनीतिक पहलवानों का 'दंगल', 'उम्मीदवारों नहीं नेताओं की होगी हार-जीत'

बरोदा उपचुनाव के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है. अब राजनीतिक पार्टियों के नेता और उम्मीदवार डोर-टू-डोर जाकर लोगों से वोट की अपील करेंगे.

Baroda assembly by-election 2020
Baroda assembly by-election 2020

By

Published : Nov 1, 2020, 6:00 PM IST

सोनीपत: बरोदा उपचुनाव की गहमागहमी चरम पर है. इस विधानसभा सीट पर 3 नवंबर को मतदान होने वाले हैं. 10 नवंबर को रिजल्ट की घोषणा हो जाएगी. इस बीच हम आपको बताने जा रहे हैं गोहाना के राजनीति दंगल के बारे में.

गोहाना पूरी तरह से शहरी इलाका है. इसी से सटा ठेठ ग्रामीण इलाका बरोदा विधानसभा है. उपचुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक पार्टियों ने गोहाना में ही अपने दफ्तर बना रखे हैं. हॉर्नस की आजाव और ट्रैफिक जाम के बाद जब आप बरोदा पहुंचते हैं तो पता चल जाता है कि यहां चुनाव होने वाला है.

बरोदा की पहचान यहां के पहलवान

बरोदा की पहचान यहां के पहलवान हैं. इस हलके ने देश को बड़े-बड़े पहलवान दिए हैं. ढाई सौ किलो के पहलवान रामकुमार मोटा बरोदा के ही रहने वाले थे. राजेंद्र सिंह मोर, पंडित शीशराम, जगत सिंह और सरिता मोर जैसे पहलवान भी बरोदा विधानसभा क्षेत्र की देन है. अब योगेश्वर दत्त को कौन नहीं जानता. उनका गांव भैंसवाल है.

पहलवान योगेश्वर दत्त, बीजेपी-जेजेपी समर्थित उम्मीदवार

बाबा ढाब वाले का मंदिर बरोदा हलके की खास पहचान है. कैथल जिले के नीमवाला गांव से कुछ लोग बरसों पहले बरोदा में आकर बसे थे. उन्हें खासा कहा जाता है. उस समय बरोदा में जाट समुदाय के मोर गोत्र के लोग ज्यादा थे. तब मोरों ने खासों को यहां बसाया था. तब से मोरों और खासों के बीच खास तरह की दोस्ती है.

ग्रामीण इलाका है बरोदा विधानसभा

बरोदा के लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदने के लिए गोहाना ही आते हैं. कुछ ज्यादा और बड़ी खरीदारी करनी हो तो सोनीपत और रोहतक की ओर कूच करते हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब सूबे के सीएम बने थे, तब श्रीकृष्ण हुड्डा ने उनके लिए किलोई में अपनी सीट खाली कर दी थी. इसके बाद श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे थे. उनके स्वर्गवास की वजह से बरोदा में उपचुनाव हो रहा है.

इंदु नरवाल, कांग्रेस उम्मीदवार

कांग्रेस ने यहां राजनीति के नए खिलाड़ी इंदु नरवाल को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा ने पहलवान योगेश्वर दत्त पर दूसरी बार भरोसा जताया है. पिछली बार योगेश्वर दत्त केवल बीजेपी के उम्मीदवार थे. अब वो जेजेपी-बीजेपी गठबंधन के सांझा उम्मीदवार हैं. इनेलो ने पिछली बार के ही अपने उम्मीदवार जोगिंदर मलिक पर फिर दांव खेला है.

मैदान में सभी पार्टियों के दिग्गज नेता

वैसे तो बीजेपी को छोड़कर अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व सांसद राजकुमार सैनी भी यहां से ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन उनके चुनाव लड़ने का मकसद दूध से भरे गिलास को पांव मारने से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा है. गोहाना और बरोदा में घुसते ही आपको लगेगा कि यहां कोरोना नाम के किसी वायरस का खौफ किसी व्यक्ति को नहीं है. सब अपने में मस्त हैं. अधिकतर लोग आपको बिना मास्क के नजर जाएंगे.

जोगेंद्र मलिक, इनेलो उम्मीदवार

करीब पौने दो लाख मतदाताओं वाले बरोदा हलके में 54 गांव आते हैं. यहां छह बार कांग्रेस और छह बार ताऊ देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली पार्टी इनेलो ने चुनाव जीता है. भाजपा जहां जींद की तरह बरोदा की बंजर राजनीतिक जमीन पर फूल खिलने की आस में चुनाव लड़ रही है. वहीं उसकी सहयोगी पार्टी जेजेपी पर इनेलो कैडर का वोट बीजेपी को दिलाने का भारी दबाव है.

साख का चुनाव बना बरोदा उपचुनाव

बरोदा के लोगों के मुताबिक पिछले और अब के चुनाव में भारी फर्क है. इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय चौटाला पूरी मुस्तैदी के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं. उनका टारगेट कहने के लिए भले ही अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत हो, लेकिन वो बरोदा के रण से इनेलो के कैडर वोटबैंक को वापस अपने साथ जुड़ा होने का संदेश देने की ज्यादा कोशिश में हैं.

कांग्रेस की आपसी फूट जगजाहिर है. एक तरह से ये चुनाव पूरी तरह से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा लड़ रहे हैं. यूं कहिए कि बरोदा के रण में पार्टियों के उम्मीदवार तो नाम के हैं, लेकिन असली चुनाव मुख्यमंत्री मनोहर लाल, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा, इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला के बीच हो रहा है.

राजकुमार सैनी, लोकतंत्र सुरक्षा मंच पार्टी के उम्मीदवार

'उम्मीदवार नहीं नेताओं की होगी हार-जीत'

बरोदा के पहलवान भगत सिंह मोर, नरेश कुमार, अमरजीत सिंह, विजय कुमार और कुलदीप ठोलेदार के मुताबिक यहां उम्मीदवार नहीं, नेताओं की हार जीत होगी. चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा, इस सवाल का जवाब देते-देते हर उम्र के लोगों की ये टोली अचानक चुप हो जाती है. फिर बोलती है, बरोदा में कोई मुद्दा नहीं है, हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि यहां के नतीजे बहुत ही चौंकाने वाले होंगे.

ये भी पढ़ें- चुनावी इतिहास बताता है इस बार रोचक होगा बरोदा का दंगल! देखिए पिछले 54 सालों की रिपोर्ट

किसान किसी भी पार्टी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका में होंगे. दबी सी आवाज ये भी निकल रही कि बीजेपी का साथ दे रही जेजेपी को अपने वजूद के लिए कुछ खास मेहनत करनी पड़ सकती है, क्योंकि पहले उसे बीजेपी के खिलाफ वोट मिले थे और आज वो बीजेपी के लिए वोट मांग रही है. इसके बावजूद बीजेपी के पास खोने को कुछ नहीं है. उसे अपने विकास के मुद्दे और कांग्रेस को अब तक के विकास के आधार पर जीत का भरोसा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details