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बरोदा की जनता ने बताया किन मुद्दे पर देंगे वोट, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

बरोदा में सिर्फ 22 दिन के बाद उपचुनाव होने वाला है. ऐसे में प्रदेश के सभी राजनीतिक दल बरोदा विधानसभा सीट पर जीत का परचम लहराने की चाहत लिए एक्टिव मोड में आ चुके हैं. वहीं बरोदा की जनता भी राजनीतिक पार्टियों के काम काज को परख रही है, ताकि अपने सही प्रतिनिधी का चुनाव कर सके, इसी चुनावी माहौल में ईटीवी की टीम भी बरोदा में 'बोल बरोदा बोल' कार्यक्रम के तहत लोगों की नब्ज टटोलने पहुंच चुकी है.

baroda public opinion on main issues of baroda assembaly
ईटीवी भारत कार्यक्रम बोल बरोदा बोल

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Published : Oct 12, 2020, 10:19 PM IST

बरोदा:सोनीपत के बरोदा विधानसभा में आजकल राजनीति गरम हो चुकी है, क्योंकि बरोदा में तीन हफ्ते बाद उपचुनाव होने वाला है. ऐसे में दिल्ली हो या चंडीगढ़ सभी की नजर बरोदा सीट पर टिकी है. इस सीट को जीतना हरियाणा की सभी पार्टियों के लिए ईज्जत की बात है. यही वजह है कि सभी राजनैतिक दल बरोदा की तरफ रुख कर चुकी हैं, लेकिन बरोदा सीट किसकी होगी इसका फैसला सिर्फ यहां की जनता करेगी. इसलिए ईटीवी भारत की टीम 'बोल बरोदा बोल' कार्यक्रम के तहत सीधे बरोदा की जनता से पूछने पहुंची है.

ये है बरोदा विधानसभा का गांव ठसका, चुनावी हलचल बढ़ते ही इस गांव में भी लोग चुनावी मुद्दों पर चर्चा करने लगे हैं ताकि वो इस बार एक सही प्रतिनिधी का चुनाव कर सकें. इसी चुनावी माहौल में ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों की नब्ज टटौलने की कोशिश की, कि इस बार यहां के लोग किन मुद्दों पर वोट देने वाले हैं.

बरोदा की जनता ने बताया किन मुद्दे पर देंगे वोट, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

'कई सालों बाद अब होने लगे हैं विकास कार्य'

गांव ठसका के ग्रामीणों का कहना है कि बरोदा विधानसभा में पहले कभी विकास नहीं हुए थे. विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद जब चुनावी वक्त आया तो बरोदा विधानसभा में चारों तरफ विकास कार्य किए जा रहे हैं. ग्रामीण शिव कुमार का कहना था कि सरकार जो विकास कार्यों की घोषणा की जाती है आम जनता तक नहीं पहुंचती. सड़कें बिल्कुल खराब पड़ी हैं आने-जाने का रास्ता नहीं आज तक रोडवेज के पास गांव तक नहीं पहुंची है. कई बार इसकी शिकायत सोनीपत अधिकारी तक की जा चुकी है, लेकिन आज तक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिली.

पढ़ने लिखने वाले बच्चों को मिल जाता है रोजगार- ग्रामीण

गांव में पानी-पीने की समस्या नहीं है क्योंकि गांव में भूजल अच्छा है. बिजली पर्याप्त मात्रा में मिल रही है, दिन में 4 घंटे आती है रात को पूरी रात रहती है. ग्रामीणों का कहना है कि वैसे लड़के नौकरी के लिए शहरों की तरफ चले जातें है. प्राइवेट जॉब कर लेते हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को सरकारी नौकरी भी मिली है.

'सरकारी शिक्षा व्यवस्था भी है डामाडोल'

वहीं शिक्षा को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि गांव में शिक्षा के लिए 10वीं तक का एक स्कूल बनाया गया है, लेकिन लोगों का रुझान प्राइवेट स्कूलों में ज्यादा है. वैसे लोगों की शिकायत है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा स्तर वैसा नहीं है जैसा होना चाहिए. जो बच्चे सरकारी स्कूल में जाते हैं उनकी शिक्षा जरूरत के हिसाब काफी बेकार है. ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी स्कूल के शिक्षक भी इतने गंभीर नहीं दिखते हैं. जिस वजह से गांव में सरकारी शिक्षा व्यवस्था कुछ ज्यादा प्रभावी नहीं है.

ईटीवी भारत की टीम ने गांव ठसका में लोगों से बातचीत कर ये जाना कि, यहां कि स्थिति उतनी बेहतर नहीं है जितनी होनी चाहिए. यहां के लोग भी एक बेहतर प्रतिनिधी चाहते हैं, जिससे इनकी आवाज चंडीगढ़ तक प्रभावी ढंग से पहुंच पाए और रोजगार, शिक्षा, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज ना होना पड़े.

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