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मां की इच्छा पूरी करने के लिए इन्होंने बनवा दिया दक्षिण भारत की तर्ज पर ये खूबसूरत मंदिर

2002 में इस मंदिर की नींव रखी गई थी और 2006 में ये मंदिर बनकर तैयार हुआ था. मंदिर निर्माता जुगल किशोर सेठी ने बताया कि उन्होंने अपनी माता शकुंतला सेठी की इच्छा पूरी करने के लिए करवाया है.

To fulfill the mother's wish Sirsa jugal Kishore built this beautiful temple on the lines of South India
मां की इच्छा पूरी करने के लिए इन्होंने बनवा दिया दक्षिण भारत की तर्ज पर ये खूबसूरत मंदिर

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Published : Dec 18, 2020, 9:24 PM IST

सिरसा: हरियाणा एक ऐसा राज्य है, जहां आपको हजारों रंग देखने को मिल जाते हैं, यहां आधुनिकता भी है और प्राचीन संस्कृतियों के साथ कला से भरी विरासत भी है. आज हम आपको हरियाणा के सिरसा जिले के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दिखने में दक्षिण भारत के मंदिरों के जैसा है.

पूरे हरियाणा में नहीं है ऐसा दूसरा मंदिर

सिरसा से जमाल रोड गांव रंगड़ी में स्थित यह सरस्वती माता का मंदिर है. जो पूरी तरह दक्षिणी भारत के मंदिरों की तरह ही है. पूरे हरियाणा में ऐसा कोई और मंदिर नहीं है. ये सिरसा में मां सरस्वती का एकमात्र मंदिर है. मंदिर के पुजारी ने बताया कि हर साल बसन्त पंचमी पर यहां मेला लगता है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते है और उनकी मनोकामना पूरी होती है.

मां की इच्छा पूरी करने के लिए इन्होंने बनवा दिया दक्षिण भारत की तर्ज पर ये खूबसूरत मंदिर, देखिए वीडियो

मां की इच्छा पूरा करने के लिए किया मंदिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण माता सिरसा के निवासी जुगल किशोर सेठी ने अपनी माता शकुंतला सेठी की इच्छा पूरी करने के लिए करवाया है. जुगल किशोर सेठी जी ने बताया कि उनकी माता श्रीमती शकुन्तला देवी की दिलीच्छा थी कि माँ सरस्वती का एक मंदिर बनाया जाए. जिसके बाद जुगल किशोर जीन ने 2002 में इस मंदिर की नींव रखी और 2006 में मंदिर बनकर तैयार हुआ. उस वक्त इस मंदिर के निर्माण में करीब 50 लाख की राशि खर्च हुई थी.

ऐसे मिली थी इस मंदिर को बनाने की प्रेरणा

जब हमने जुगल किशोर जी से पूछा कि आपको साउथ इंडिया के मंदिरों की तरह यहां मंदिर बनवाने का आइडिया कैसे मिला. तो उन्होंने बताया कि उनका माचिस का व्यापार है. जिस वजह से उन्हें व्यापार के लिए तमिलनाडु जाना होता है. तमिलनाडु में उन्होंने वहां के सभी मंदिर देखे, तो उन मंदिरों को देखकर जुगल किशोर जी को ख्याल आया कि सिरसा में भी ऐसा मन्दिर होना चाहिए. जिसके बाद उन्होंने तमिलनाडु से कारीगर बुलाए ओर मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया. आज भी मंदिर का रंग रोगन करना होता है तो तमिलनाडु के कारीगर ही बुलाए जाते हैं.

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