सिरसाः हरियाणा सरकार भले ही अपने पिछले पांच साल के कार्यों और विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन रानियां में हरियाणा रोडवेज का बस डिपो सरकार विकास की पोल खोलता दिख रहा है. रानियां में बने बस डिपो की हालत बद से बदतर हो गई है. आलम ये है कि इस डिपो में प्राइवेट बसें तो क्या हरियाणा रोडवेज की बस भी नहीं आती. स्थानीय लोगों के मुताबिक अब ये बस डिपो नशेड़ियों का अड्डा बन गया है.
सालों से खाली पड़ा डिपो- स्थानीय निवासी
सिरसा के रानियां गांव के बस डिपो की हालत इतनी बदतर हो गई है कि इसमें खुद रोडवेज की बसों का आना भी बंद हो गया है. बसें चाहे वो रोडवेज की हो या प्राइवेट, सभी बस डिपो के मुख्य द्वार के बाहर से चली जाती है. जिससे आमजन को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
सिरसा के रानियां में लाखों रु की लागत से बना बस डिपो खंडर हो गया है. बस के लिए जाना पड़ता है बाहर
स्थानीय लोगों ने बताया कि यात्रियों को बस पकड़ने के लिए डिपो से बाहर सड़क पर जाना पड़ता है. अगर कोई बस इस डिपो में आती भी है तो बिना रुके घूम कर बाहर से चली जाती है. अब ये बस डिपो नशेड़ियों का अड्डा बन गया है. जिसकी तरफ सरकार और प्रशासन ने अपनी आंखें बंद कर रखी है.
लाखों रुपये की लागत से हुआ निर्माण
रानियां के लोगों का कहना है कि इस डिपो के रख रखाव की तरफ सरकार और प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है. उनका कहना है कि लाखों रूपये की लागत से इस बस डिपो को बनाया गया लेकिन अब यहां नशेड़ियों ने अपना अड्डा बना लिया है. लोगों का कहना है कि उन्होंने इसकी बदतर हालत को लेकर प्रशासन और सरकार को कई बार शिकायत की, लेकिन अब तक किसी भी तरह की कोई कारवाई नहीं की गई है. लोगों का कहना है कि खाली पड़े डिपो के आसपास से भी गुजरने को डर लगता है. पढ़ाई के लिए शहर जाने वाले बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. क्यों कि उन्हें यहीं से गुजरना पड़ता है.
जमीनी स्तर पर विकास की जरूरत
गौरतलब है कि सिरसा के रानियां गांव में बना बस डिपो केवल सफेद हाथी नजर आ रहा है. यहां ना तो बस अंदर आती है और ना ही यात्री. यानी बस पकड़ने के लिए यात्रियों को डिपो से बाहर सड़क पर जाना पड़ता है. इसी बीच अगर कोई बस इस डिपो में आती भी है तो बिना रुके घूम कर बाहर चली जाती है. यही नहीं खाली बस डिपो को नशेड़ियों ने अपना अड्डा बना लिया है. ऐसे में सरकार और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि ये बस डिपो केवल देखने के नहीं जमीनी स्तर पर लोगों के काम आए.