सिरसा: भारतीय रेलवे एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. 16 अप्रैल 1853 को पहली ट्रेन मुंबई में बोरी बंदर स्टेशन से थाणे तक चली थी. तब से लेकर आजतक कितना भी बुरे से बुरा दौर क्यों ना आ गया हो. इसका असर कभी रेल के सफर पर नहीं पड़ा, लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद पहली बार लॉकडाउन ने भारतीय रेलवे के पहिये थाम दिए हैं.
हालांकि सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए कुछ मजदूर स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, लेकिन उसके बाद भी देश की लगभग 90 प्रतिशत पैसेंजर ट्रेन अभी भी बंद हैं.
देश में ट्रेन को लाइफ लाइन माना जाता है. यही वजह है कि हर व्यक्ति की इससे जुड़ी कोई ना कोई खास कहानी जरूर होती है. खासकर उन लोगो की जो इन रेलवे पटरियों या फिर रेलवे स्टेशन के पास रहते हैं और अपने रोजमर्रा के काम भी ट्रेनों की टाइमिंग के हिसाब से ही सेट कर लेते हैं. ऐसा ही कुछ किया है सिरसा के रेलवे कॉलोनी में रहने वालों लोगों ने, जिन्होंने अपने रोजमर्रा के जीवन में ट्रेनों को इस कदर बसा लिया है कि उसके लिए ट्रेन की तेज आवाज परेशानी भरी नहीं बल्कि एक आलर्म की तरह काम होती है.