रेवाड़ीःखेतियावास गांव निवासी 70 वर्षीय बागवानी किसान जगदीश ने अपनी 35 एकड़ जमीन पर पिछले 12 सालों से बागवानी कर मुनाफा कमा रहे हैं. घरेलू खेती छोड़ बागवानी कर रहे किसान जगदीश को इस खेती से जहां मुनाफा हो रहा है.
वहीं दूसरी ओर उन्हें काफी नुकसान का भी सामना करना पड़ रहा है. बागवानी में लग रही नई-नई बीमारियों के चलते किसान काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि सरकारी योजनाएं केवल कागजी बनकर रह गई हैं. किसानों को इन योजनाओं का कोई फायदा नहीं मिल रहा.
बागवानी किसानों पर बरपा ठंड का कहर 35 एकड़ जमीन पर बागवानी
खेतियावास गांव निवासी 70 वर्षीय बागवानी किसान जगदीश ने अपनी कुल 35 जमीन में से 10 एकड़ पर अमरूद, 5 एकड़ पर मौसमी, 2 एकड़ पर माल्टा, 18 एकड़ पर कीनू और 1 एकड़ जमीन पर नींबू लगाए हुए हैं.
साल 2007 से लगातार बागवानी कर रहे किसान जगदीश ने बताया कि बागवानी की पंजाब में 20 से 25 साल और हरियाणा में 10 से 12 साल की मियाद फसलों की होती है. पंजाब में नहरी पानी होने से बागवानी की मियाद ज्यादा है अगर हरियाणा में भी नहरी पानी मिले तो यहां भी मौसम फसल के अनुकूल रहेगा और फसलों को पर्याप्त और मीठा पानी उपलब्ध होगा. जिससे यहां की बागवानी की भी मियाद पंजाब के बराबर हो सकेगी.
हर साल इतना होता है खर्चा
किसान जगदीश की मानें तो हर साल प्रति एकड़ पर उन्हें 30 हजार खर्च करने पड़ते हैं जिसकी एवज में वो हर साल प्रति एकड़ से 1 लाख तक की आमदनी कर लेते हैं. किसान जगदीश ने बताया कि वो अपनी फसलों को बीमारी से बचाने के लिए गोमूत्र का स्प्रे ज्यादातर करता है.
ये भी पढ़ेंः 34वां अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेला: लोगों ने जमकर उठाया जादू के खेल का लुत्फ
गोमूत्र से फसलों की सुरक्षा
वहीं अधिक पैदावार लेने के लिए जगदीश जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं जिसके लिए उसने अपने फार्म हाउस पर 25 गाय रखी हुई है. उन्होंने बताया कि इन गायों ने उन्हें दूध के साथ-साथ गोबर की खाद व गोमूत्र फसलों पर छिड़काव के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है. जिसके चलते वो अपनी फसलों को ज्यादातर बीमारियों से छुटकारा दिलाने में सफल भी रहते हैं.
ये बीमारियां करती हैं फसलों को नष्ट
किसान जगदीश ने बताया कि ज्यादातर बागवानी में जड़ गलत नीमा टोड व्हाइटफ्लाई यानी सफेद मक्खी रेडलाइट यानी मोटी मक्खी बीमारियां लग जाती है. जिससे फसल के साथ-साथ पेड़ भी नष्ट हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि फसलों के बचाव के लिए वो ज्यादातर गोमूत्र का स्प्रे कर अपनी फसल को सुरक्षित रखता है लेकिन उसके बावजूद कुछ फसलें ऐसी भी है जो बर्बाद हो जाती है.
'कागजों तक सिमटी सरकारी योजनाएं'
बागवानी से तैयार फसल को किसान रेवाड़ी, पटौदी, भिवाड़ी, धारूहेड़ा और गुरुग्राम की मंडियों में अपने वाहनों द्वारा ही सप्लाई करता है. किसान जगदीश ने बताया कि हर साल की तरह इस साल सर्दी का प्रकोप फसलों पर हावी रहा. जिससे मुनाफा कम हुआ है.
किसान ने बताया कि भावांतर भरपाई फसल योजना का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि किसान फसल बर्बाद होने पर आत्महत्या कर रहा है और सरकार कागजों में ही खानापूर्ति कर किसान की आमदनी डेढ़ गुना करने की बात कह रही है. जबकि हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है.