पानीपत:आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और जीवन शैली में बदलाव के कारण कुछ ऐसे अनुवांशिक रोग सामने आ रहे हैं, जो कि बड़े दुर्लभ है. डाउन सिंड्रोम, कॉलोडियन सिंड्रोम जैसी बीमारी से ग्रसित बच्चों की संख्या माता-पिता की बदलती जीवन शैली के कारण बढ़ती जा रही है. ऐसा ही एक मामला पंजाब के जीरकपुर से सामने आया है. जिसमे बच्चा कोलोडियन सिंड्रोम से ग्रसित पाया गया. जिसका पानीपत में एक डॉक्टर की टीम इलाज कर रही है. इस बच्चे को 2 महीने के इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ किया गया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट: विशेषज्ञों के मुताबिक कॉलोडियन सिंड्रोम विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है. जो कि मां-बाप के शुक्राणुओं में गड़बड़ी की वजह से होती है. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों, तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है. इस रोग में बच्चा शरीर पर प्लास्टिक की तरह दिखने वाली परत के साथ पैदा होता है.
प्लास्टिक स्किन में जानलेवा दर्द से तड़पता है बच्चा: स्पेशलिस्ट डॉक्टर शालीन पारीक ने बताया कि यह ऑटोसोमल रिसेसिव जेनेटिक डिसऑर्डर एक (डर्मेटोलॉजिकल इमरजेंसी) त्वचा संबंधी आपात स्थिति है. जो एक लाख बच्चों में से एक बच्चे को होती है. पानीपत में ऐसी स्थिति में किसी बच्चे के जीवित रहने का यह पहला मामला है. इस रोग में बच्चे की छाती, हाथ-पैर के ऊपरी और निचले हिस्से पर एक मोटी झिल्ली से ढकी लाल त्वचा होती है. मेडिकल भाषा में इसे क्लोडियन झिल्ली के रूप में जाना जाता है. इसकी वजह से बच्चे की पलकें और होंठ फटे हुए होते है और कान विकृत होते हैं.
बच्चे की जान को खतरा: सामान्य महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन हो सकता है. इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है. धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है. यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल हो जाता है या यूं कहे की ऐसे में बच्चे की जान चली जाती है.