पानीपत/ डेस्क: हरियाणा... वो सूबा... जिसकी कहानियां आज नहीं सदियों से पढ़ी जाती है... ये वही पानीपत का मैदान है जहां तीन-तीन युद्ध हुए. यहां की मिट्टी बार-बार लाखों बहादूरों के खून से लाल हुई. पानीपत की इन्हीं लड़ाईयों ने इतिहास के पन्नों पर भारत की तकदीर लिखी. ईटीवी भारत की खास पेशकश 'युद्ध' में हम आपको पानीपत के तीनों युद्धों की कहानियों से रूबरू करवाने जा रहे हैं.
भारत सदियों से ही दुनिया की नजरों में महान और अमीर देशों में से एक माना जाता था. इसके पीछे जो मुख्य वजह थी वो था वहां का सोना. भारत उस समय में दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र हुआ करता था. भारत में व्यापार करने आने वाले लोग सोना लेकर ही आते थे.
भारत पर कब्जा चाहता था हर विदेशी देश
भारत के मंदिरों में इतना सोना होता था कि कई देशों को अमीर बहुत अमीर बनाया जा सकता था. यही बड़ी वजह थी कि विदेशी शासकों और आक्रमणकारी की नजरें भारत पर टिकी रहती थी.
इतिहासकार रमेश पुहाल का कहना है कि आज से करीब 500 साल पहले उत्तर भारत में मुगलों का प्रवेश किया. उनका सपना था इस देश पर अपना कब्जा करना. यहां की दौलत किसी तरह से हथिया लेना और मुगलों के इस सपने का परिणाम था. पानीपत का पहला युद्ध. इतिहास की किताबें कहती हैं कि ये देश में पहला युद्ध था जहां बारूद और तोपों का इस्तेमाल किया गया था और ये ताकत थी मुगलों के पास.
इब्राहिम ना बन पाया कामयाब शासक!
वो साल था 1517 लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी की मौत हो चुकी थी और दिल्ली की तख्त पर उसका बेटा इब्राहिम लोदी था. इब्राहिम लोदी अपने ही परिवार के षडयंत्रों के चलते लगातार कमजोर हो रहा था. उसे तख्त संभालना मुश्किल हो रहा था. दिल्ली की सत्ता और जनता दोनों की ही हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी और अफगान में बैठे जाहीर उद्दीन मुहम्मद बाबर ये मौका युद्ध के लिए अच्छा लगा.
'इब्राहिम लोदी ने बाबर को समझा नाटा'
बाबरनामे में इस युद्ध के बारे में लिखा है कि बाबर बस 25 हजार की सेना लेकर ही युद्ध करने आ रहा था. इब्राहिम लोदी के पास करीब 1 लाख लोगों की सेना थी. असल में लोदी को यह लग रहा था कि एक छोटी-सी सेना उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है. इसी भूल में बाबर को रोकने के लिए इब्राहिम लोदी ने अपने एक सेनापति को सेना के साथ भेजा, लेकिन यहाँ बाबर ने सामने वाले की सेना को हरा दिया.