पानीपत: इंडियन ट्रेड यूनियन एवं सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने लेबर कोड बिलों में संशोधन को लेकर प्रदर्शन किया. प्रदर्नकारियों ने कहा 23 जुलाई को लोकसभा में लाए गए बिल को तुरंत वापस लिया जाए. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ये बिल पूंजीपतियों के हित में है. इससे मजदूर वर्ग को भारी नुकसान होगा.
लेबर कोड बिलो में संसोधन से नाराज कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन प्रदर्शन के दौरान भारी संख्या में महिलाएं भी मौजूद रहीं. सभी प्रदर्शनकारियों ने एकजुट होकर प्रधानमंत्री के नाम उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा. साथ ही महिला स्कीम वर्करों ने कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने की सरकार से मांग की.
बिल में क्या है ?
- इस बिल में श्रमिकों के वेतन से जुड़े चार मौजूदा कानूनों-पेमेंट्स ऑफ वेजेस एक्ट-1936, मिनिमम वेजेस एक्ट-1949, पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट-1965 और इक्वल रेमुनरेशन एक्ट-1976 को एक कोड में शामिल करने की तैयारी है. कोड ऑन वेजेज में न्यूनतम मजदूरी को हर जगह एक समान लागू करने का प्रावधान है. इससे हर श्रमिक को पूरे देश में एक सामान वेतन सुनिश्चित किया जा सके.
- इस बिल में मजदूरी से जुड़े तमाम मुद्दों जैसे बराबरी का वेतन, वक्त से पेमेंट और बोनस को शामिल किया गया है. न्यूनतम वेतन में आधारभूत मजदूरी, जीवनयापन का खर्च और खर्च में कटौती को शामिल किया गया है. साथ ही इसमें मजदूर का हुनर, मजदूरी में होनी वाली मेहनत और भौगोलिक स्थिति का भी आकलन किया जाना है. इस आधार पर केंद्र और राज्य सरकारें न्यूनतम मेहनताना तय करेंगे.
- अब तक कानून ये कहता था कि 24 हजार रुपये पाने वाले कर्मचारियों की ही जरूरी कटौती और वेतन देने की समय सीमा तय थी. लेकिन नए कानून के तहत सभी कर्मचारियों को ये सुविधा मिलेगी. इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए अब इंस्पेक्टर सह अनुदेशक रखे जाएंगे पहले इस काम को लेबर इंस्पेक्टर देखते थे. संसदीय समिति ने इंस्पेक्टर को हटाने पर आपत्ति जताई थी उनका मानना था कि इससे कानून को लागू करने में दिक्कतें आएंगी इसलिए अब नए निर्देश जारी किए जा रहे हैं.
- इस बिल में ये भी प्रावधान है कि इसके लिए एक या एक से ज्यादा अधिकारी भी रखे जा सकते हैं ताकि वादों का जल्द से जल्द और सस्ते में निपटारा हो सके. वेतन घटाने, बोनस न देने और वेतन कटौती के मामलों में साबित करने की जिम्मेदारी नौकरी देने वाले की होगी. इस बिल में ऐसे दावे करने की अवधि को भी (6 महीने से 2 साल तक) बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है.
- इस बिल में प्रावधान है कि हर पांच साल में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई जाए और वेतन देने में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाए.
क्यों किए जा रहे हैं बदलाव?
बिल पेश करने के कारणों के मुताबिक इसका मकसद बराबरी लाना और मजदूरी कानूनों को सरल करना है. इससे ज्यादा इंडस्ट्री लगेंगी और रोजगार का सृजन होगा. साथ ही इससे आम मजदूरों को सीधा लाभ मिलेगा. इस बिल को दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग के सिफारिशों के आधार पर बनाया गया है. 2018-19 का आर्थिक सर्वे बताता है कि देश के वेतन व्यवस्था में कौन सी खामियां हैं.