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पीएम मोदी ने पहनी थी जिस धागे की जैकेट, उसका हब है हरियाणा का ये जिला, विदेशों में बजता है डंका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीली जैकेट आजकल खूब चर्चा में है. क्योंकि ये जैकेट पेट यार्न से बनाई गई है. क्या आपको पता है कि हरियाणा का पानीपत जिला पेट यार्न का हब माना जाता है. जानें क्या होता है पेट यार्न? जिससे पीएम मोदी की जैकेट बनाई गई है.

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Published : Feb 9, 2023, 2:03 PM IST

pet yarn in panipat
pet yarn in panipat

पानीपत में प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल कर पेट यार्न बनाने की करीब सात से आठ इकाइयां हैं

पानीपत: बुधवार को संसद के बजट सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक खास नीली रंगी की जैकेट पहनकर पहुंचे थे. उस नीली जैकेट की खासियत ये थी कि उसे सिंगल यूज प्लास्टिक की बोतलों को रीसाइकल करके बनाया गया था. सोमवार को बेंगलुरु में इंडिया एनर्जी वीक के दौरान इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने पीएम मोदी को ये जैकेट भेंट की थी. पीएम ने पर्यावरण को लेकर भी स्पीच दी थी. जिसके बाद प्रधानमंत्री की ये खास जैकेट खूब चर्चा में रही.

हरियाणा के पानीपत जिले में भी ऐसी ही जैकेट के लिए यार्न में सिंगल यूज प्लास्टिक को रीसाइकल किया जाता है. पानीपत जिला प्लास्टिक की बोतलों को रीसाइकल करने का हब माना जाता है. यहां यार्न में सिंगल यूज प्लास्टिक की बोतलों को रीसाइकल किया जाता है. इसके बाद इससे धागे बनाए जाते हैं. जिसका इस्तेमाल अलग अलग तरह के जैकेट और कंबल बनाने में किया जाता है. इसकी डिमांड काफी बढ़ रही है. पर्यावरण के लिहाज ये काफी अच्छी होती है.

पीएम मोदी की इस जैकेट को सिंगल यूज प्लास्टिक को रिसाइकिल करके बनाया गया है.

विदेशों में पानीपत के पेट यार्न की मांग: पानीपत में इस धागे से बने उत्पादों को अमेरिका, यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों में एक्सपोर्ट किया जा रहा है. जहां इनसे बने उत्पाद की बढ़िया मांग है. पानीपत में प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल कर धागे बनाने की कई यूनिट हैं. एक्सपोर्ट के साथ डोमेस्टिक मार्केट में रोजाना मांग बढ़ रही है. बीते कुछ समय में रिसाइक्लिंग के धागे और उससे बने उत्पादों का बाजार 2000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

ऐसे बनाया जाता है प्लास्टिक से धागा: प्लास्टिक की बोतलों को रीसाइकिल कर इससे बने धागे को पेट यार्न कहा जाता है. यहां पेट से मतलब प्लास्टिक की बोतलें हैं. पानीपत में प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल कर पेट यार्न बनाने की करीब सात से आठ इकाइयां हैं. एक अनुमान के मुताबिक इन यूनिटों में हर रोज करीब 20 हजार किलो पेट यार्न का उत्पादन होता है. सबसे पहले प्लास्टिक की बोतलों के चिप्स बनाकर प्लांट में फाइबर बनाया जाता है. इसके बाद फाइबर से धागा बनाया जाता है. जिससे कारपेट, दरी, बाथमेट यहां तक की शॉल भी बनती हैं.

अब पेट यार्न के साथ ऊन को मिलाकर भी धागा तैयार किया जा रहा है. जिसकी काफी डिमांड है.

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अब पेट यार्न के साथ ऊन को मिलाकर भी धागा तैयार किया जा रहा है. पेट यार्न से बने उत्पादों की अच्छी मांग है, इसे लोग पसंद कर रहे हैं. क्योंकि ये जल्दी खराब भी नहीं होता. इसकी चमक भी लंबे वक्त तक बरकार रहती है. इससे बना धागा मुनाफे के साथ साथ पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में भी कारगर साबित हो रहा है. इससे बने उत्पाद की बाजारों में मांग बढ़ रही है. पेट यार्न की इकाई चलाने वाले उद्योगपतियों का भी मानना है कि देश के प्रधानमंत्री के इस संदेश से पेट यार्न से बने उत्पादों की डोमेस्टिक मार्केट में मांग बढ़ेगी.

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