पानीपत :अगर यहां के बच्चों से आप पूछेंगे कि बड़ा होकर क्या बनोगे, तो वे बोलेंगे कि हनुमान बनेंगे. दरअसल यहां सालों से हनुमान जी का स्वरूप धारण करने की परंपरा चली आ रही है. भागदौड़ भरी आज की ज़िंदगी में जब लोगों के पास वक्त तक नहीं है, तब लोग सब काम छोड़कर दशहरे के 40 दिन पहले से इस परंपरा को निभाना शुरू कर देते हैं और घर छोड़कर मंदिर पहुंच जाते हैं. इस दौरान व्रत धारण कर पूरी शिद्दत से नियमों का पालन किया जाता है.
पाकिस्तान से आई परंपरा :बताया जाता है कि आजादी से 80 साल से भी ज्यादा वक्त पहले पाकिस्तान के लैय्या जिले से इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. पानीपत में ये परंपरा लैय्या बिरादरी की ही देन बताई जाती है.
ये भी पढ़ें :Navratri special - पानीपत के प्राचीन देवी मंदिर में होती है हर मुराद पूरी, जानिए कैसे देवी की करें आराधना
परंपरा के दौरान सख्त नियम :जो भी लोग घर छोड़कर मंदिर जाकर इस व्रत को लेते हैं, उनके लिए दो नियम हैं, एक 11 दिनों तक और दूसरा 40 दिन तक. वैसे तो लोग हनुमान जी का स्वरूप 40 दिन पहले ही धारण कर लेते हैं, लेकिन कई बार वक्त की कमी के चलते कुछ लोग 11 दिन पहले भी इस खास व्रत को धारण कर मंदिर पहुंचते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि इस दौरान ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन किया जाता है. साथ ही ज़मीन या लकड़ी के तख्त पर सोना पड़ता है. वहीं आप 24 घंटे में सिर्फ एक बार अन्न ग्रहण कर सकते हैं. नंगे पैर रहना पड़ता है, साथ ही लाल लंगोट पर भी ख़ासा ध्यान दिया जाता है.
2 से शुरू, 2000 के पार :महावीर बाजार के हनुमान मंदिर में 40 दिन के व्रत के साथ हनुमान स्वरूप धारण कर बैठे जीवन प्रकाश ने बताया कि 1947 से अगले कई साल तक पानीपत में सिर्फ भक्त मूलचंद और दुलीचंद हनुमान जी का स्वरूप धारण करते थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती चली गई. आज इस ख़ास व्रत को धारण करने वालों की तादाद बढ़कर 2000 के पार जा चुकी है.