पानीपत: नेशनल थ्रोबॉल प्लेयर प्रियंका को हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (Haryana Staff Selection Commission) द्वारा मिली क्लर्क की नौकरी खतरे में पड़ गई है. इसका कारण यह है कि आयोग द्वारा साल 2021 में जो भर्तियां की गई थी उसमें कुछ खामियां पाई गई है. इन खामियों के चलते आयोग ने भर्ती किए गए सभी क्लर्क को पद से हटा दिया है. आयोग ने जिन लोगों को पद से हटाया है उनमें प्रियंका का भी नाम शामिल है.
स्पोर्ट्स कोटे से मिली थी प्रियंका को नौकरी- बता दें कि पानीपत के सोंधापुर गांव (Sondhapur Village Of Panipat) की रहने वाली प्रियंका एक नेशनल थ्रोबॉल प्लेयर है. वे अब तक थ्रो बॉल स्पोर्ट्स में दो इंटरनेशनल, पांच जूनियर नेशनल और पांच सीनियर नेशनल टूर्नामेंट खेल चुकी हैं. प्रियंका अब तक 25 मेडल जीत चुकी हैं. प्रियंका ने बताया कि थ्रो बॉल फेडरेशन की ओर से उनका नाम स्पोर्ट्स के तहत मिलने वाली नौकरी के घोषित किया गया था. इसके बाद साल 2021 में उन्होंने हरियाणा स्टाफ स्लेक्शन कमिशन से निकली क्लर्क की भर्ती में आवेदन किया था. जिसके बाद उन्हें पानीपत रेवेन्यू डिपार्टमेंट (Panipat Revenue Department) में क्लर्क की नौकरी मिली थी.
इस महिला थ्रोबॉल प्लेयर की नौकरी पर लटकी तलवार, पिता चलाते हैं घोड़ा गाड़ी नौकरी में बने रहने के लिए देना होगा टेस्ट- प्रियंका ने बताया कि एसएससी की गड़बड़ी के चलते पिछले साल जो भर्तियां हुई उसमें अब कुछ अनियमितताए पाई गई है. इसकी वजह से रिजल्ट को दोबारा रिवाइज किया गया है. इसकी वजह से जो लोग भर्ती हुए थे उनको एक टेस्ट देना पड़ रहा है. जिन लोगों के नंबर कम आए हैं उनकी नौकरी चली गई है. दरअसल साल 2021 में क्लर्क एग्जाम में कुछ लोगों ने अपनी जगह डमी कैंडिडेट बैठा दिए थे जिसका पता चलने पर अब लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है. अब मुझे भी एक टेस्ट पास करना होगा तभी ड्यूटी ज्वाइन कर पाउंगी.
प्रियंका के पिता घोड़ा गाड़ी चलाते हैं. पिता चलाते हैं घोड़ा गाड़ी- प्रियंका बताती हैं कि वह दो बहने हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. उनके पूरी फैमिली का गुजर-बसर घोड़ागाड़ी से होता है. उनके पिता जयपाल घोड़ागाड़ी चलाकर उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं. उनका परिवार मूलत: हरियाणा के कैथल का रहने वाला है. हालांकि कई साल पहले काम की तलाश में प्रियंका के पिता पानीपत के सोंधापुर गांव में आकर रहने लगे. कोई काम ना मिलने पर उन्होंने घोड़ा बुग्गी से ही माल ढुलाई कर परिवार का पालन- पोषण करने लगे. प्रियंका ने बताया कि वो जब बेटी छठवीं क्लास में पढ़ रही थी उसी दौरान उसका रूझान थ्रोबॉल खेलों में हुआ. तब उनके पिता ने मेरे सपने को पूरा करने के लिए जैसे-तैसे सामान मुहैया करवाए और मुझे खेलने के लिए भेजा.
पड़ोसवालों ने मारे ताने-प्रियंका को खेलता देख उनके आस-पड़ोस के लोगों ने उनके पिता को ताना देने लगे कि बेटी को बाहर खेलने भेजोगे तो बिगड़ जाएगी. पिता ने इन बातों की ओर ध्यान ना देते हुए बेटी को लगातार खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. प्रियंका ने भी अपने पिता का मान सम्मान बनाए रखा और एक के बाद एक मेडल लाती चली गई. पांच बार सीनियर नेशनल लेवल पर खेलने के बाद पांचो बार जीत हासिल की. इसके अलावा प्रियंका ने दो बार एशियन गेम में अपनी टीम में बतौर कैप्टन की भूमिका निभाते हुए गोल्ड मेडल दिलाया.
परिवार की आर्थिक तंगी को किया दूर- कोच राजेश टूरण ने बताया कि छठी कक्षा से प्रियंका उनके पास थ्रो बॉल सीखने के लिए आया करती थी. प्रियंका ने अब तक 25 पदक जीते हैं. नौकरी लगने के बाद भी वो पांच बजे के बाद ग्राउंड पर आकर प्रैक्टिस करती है. इस बेटी ने परिवार को आर्थिक तंगी से तो निकाला ही साथ ही देश और प्रदेश का नाम भी रोशन किया है.