पानीपत: ईटीवी भारत हरियाणा की विशेष पेशकश 'युद्ध' में हम आज बात करने जा रहे हैं उस दौर की, जब दिल्ली के तख्त पर 14 साल अकबर था. दिल्ली के सम्राट हुमायूं का निधन हो चुका था और उधर लगातार युद्धों में अपना परचम फहराने के बाद हेम चंद्र मौर्य खुद दिल्ली को जीतना चाहता था.
वो साल था 1555... दिल्ली...वो दौर जब हुमायूं ने सूरी वंश को दिल्ली से खदेड़ चुका था. दिल्ली के किले पर मुगल सल्तनत का परचम लहरा रहा था और हुमायूं की मौत के बाद 13 साल के अकबर को सम्राट घोषित कर दिया गया था. वहीं सूरी वंश अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन हेमू लगातार आदिल की सरपरस्ती में सिर उठा रहा था.
हेम चंद्र मौर्य खुद राजा बनना चाहता था!
हेमू कहने के लिए आदिल का सेनापति था मगर खुद ही पूरे सम्राज्य पर नियंत्रण कर चुका था. वो भीतर ही भीतर अपने लक्ष्य के लिए काम कर रहा था. वो धन इकट्ठा कर रहा था. वो अपने वफादारों की फौज तैयार कर रहा था. वो एक निपुण शासक की तरह काम कर रहा था. कहते हैं कि वो शेर शाह सूरी की तरह सोचता था.
हेमू अफगानों के हाथ से निकली सभी रियासतों को फिर अपने सम्राज्य में जोडने लगा था यही वजह थी कि वो अफगानियों का मसीहा बन चुका था.
हुमायूं की मौत की खबर ने हेमू को खुश कर दिया!
हेमू उस समय पूरे आत्मविश्वास से भर चुका था. यही वजह थी कि जैसे ही हेमू को मालूम हुआ कि हुमायूं मारा गया और महज 13 साल का उसका बेटा गद्दी पर बैठा है. उसने ठान लिया कि वो अब मुगलों पर हमला करेगा और दिल्ली पर राज करेगा मगर वो आदिल के सहयोग के साथ ही करना चाहता. बिना उसे अपने मन की बात बताए.