पानीपत: कहा जाता है कि वर्तमान की जड़ें कहीं ना कहीं हमारे इतिहास में छुपी हैं. जैसे-जैसे हम समय के साथ आगे बढ़ते गए, तकनीकी रूप से प्रगतिशील हुए, हम अपने इतिहास को भी कहीं ना कहीं भूलते जा रहे हैं, लेकिन आज भी हमारे वर्तमान में इतिहास और विज्ञान के कई प्रारूप या यू कहें कि रहस्य छुपे हैं, जिनके बारे में हमें पता ही नहीं है. हम बात कर रहे हैं कोस मीनार (kos minar) की.
जब हम किसी राष्ट्रीय मार्ग या राज्य मार्ग पर लंबी दूरी की यात्रा करते हैं, तो रास्ते में लगे दिशा सूचक बोर्ड के जरिए हमें जानकारी मिलती है कि हम सही रास्ते पर पर जा रहे हैं या नहीं. या हम अपने गंतव्य से कितने किलोमीटर दूर है. इन यात्राओं के दौरान कई बार आपने कोस मीनार भी देखी होगी, लेकिन हम ये सोच भी नहीं पाते हैं कि इन मील के पत्थरों का भी एक इतिहास है. प्राचीन काल में रास्ता मापने का कोई यंत्र या फिर दिशा सूचक बोर्ड नहीं होते थे.
तब राजा-महाराजा रास्ता मापने के लिए अलग-अलग मापकों का इस्तेमाल करते थे. इनमें से एक थी कोस मीनार (kos minar). उस समय दूरी नापने का कोई निश्चित पैमाना नहीं हुआ करता था, इसलिए कोस मीनार को रास्ता नापने के लिए बनाया गया. इन कोस मीनारों के आसपास यात्रियों के रुकने के लिए सराय और पानी के कुओं की व्यवस्था होती थी. कोस मीनारों की ऊंचाई 30 फीट के लगभग होती थी. इनका निर्माण ईंटों और चूने के पत्थरों से किया जाता था.