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पानीपत की इस दरगाह पर विदेशों से भी इबादत करने आते हैं लोग, ख्वाजा शमसुद्दीन करते हैं हर मुराद पूरी

पानीपत के सनौली में बनी ख्वाजा शमसुद्दीन की दरगाह पर देश विदेश से भी लोग इबादत के लिए आते हैं. कहा जाता है यहां आने वाले की हर मुराद पूरी हो जाती है.

Khwaja Shamsuddin Dargah Panipat
पानीपत की इस दरगाह पर विदेशों से भी इबादत करने आते हैं लोग

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Published : Dec 27, 2020, 11:05 PM IST

Updated : Dec 28, 2020, 2:57 PM IST

पानीपत: 'मेरा चिराग उस मुकाम पर जलता है जहां आंधियों का भी पहुंचने में दम निकलता है' ये कहावत पानीपत शमसुद्दीन की कहावत है जिनके इंतकाल के बाद इन्हें पानीपत में दफनाया गया और आज ख्वाजा शमसुद्दीन पानीपत की दरगाह के नाम से मशहूर है.

पानीपत के सनौली में बनी इस दरगाह पर लोग इबादत करने के लिए देश विदेशों से पहुंचते हैं. यहां दरगाह के अंदर सैकड़ों की तादाद में ताले लगे हैं, चिट्टियां लगी है, कोई अपने बेटे की नौकरी के लिए इबादत करता है तो कोई अपने गुमशुदा बेटे की तलाश में यहां चिट्ठियां लटका कर चले जाते हैं. कहा जाता है यहां आने वाले की हर मुराद पूरी हो जाती है.

पानीपत की इस दरगाह पर विदेशों से भी इबादत करने आते हैं लोग

यहां जानें पूरी कहानी

चलिए अब आपको विस्तार बताते हैं की ख्वाजा शमसुद्दीन तुर्क पानीपत कौन थे. दरअसल ख्वाजा शमसुद्दीन तुर्क तुर्किस्तान के निवासी थे जो हजरत फरीद गंजे शकर के साथ निष्ठा की शपथ लेना चाहते थे. हालांकि बाबा फरीद ने उन्हें हजरत शेख अलाउद्दीन अली अहमद साबिर के दरबार में उनका गुस्सा शांत करने के लिए भेजा था.

ख्वाजा शमसुद्दीन तुर्क कलियर शरीफ गए और हजरत शेख अलाउद्दीन अली अहमद साबिर के गुस्से को शांत कर उनके शिष्य बने, जिन्होंने उन्हें फिर अपना अध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया. इस तरह वो साबिर-ए-पाक के उत्तराधिकारी बने हजरत साबिर-ए-पाक ने हजरत शम्स को एक गुफा में सांस पर नियंत्रण पाने के लिए 6 साल के लिए भेजा.

6 वर्षों के बाद उन्हें वहां से बाहर निकाला गया और एक बार फिर उन्हें अपना शिष्य बनाकर फिर से अपने अधिकार में लिया और फिर उसे दुनिया की अनकही शक्तियां और एक भव्य स्थिति का आशीर्वाद दिया. एक बार हजरत साबिर-ए-पाक ने पूछा कि हजरत निजामुद्दीन के कितने अध्यात्मिक उत्तराधिकारी है? ये उत्तर दिया गया कि उनके 14,000 उत्तराधिकारी थे, उन्होंने तब घोषणा करते हुए कहा कि उन सभी 14,000 उत्तराधिकारियों के शम्स बनेंगे ख्वाजा शमसुद्दीन पानीपत.

ख्वाजा शमसुद्दीन की रहमत से अलाउद्दीन खिलजी को मिली थी जीत

इन संत का वाकया राजस्थान के चित्तौड़ के साथ भी जुड़ा हुआ है, जब अलाउद्दीन खिलजी राजा रतन सिंह मान के साथ बार-बार युद्ध में हार का सामना कर रहे थे तो उन्होंने खुदा की इबादत की. तब उन्हें पता चला कि आपकी सेना में भी एक ऐसे शख्स है जो आपके लिए नमाज अदा करें तो आप इस युद्ध में विजय प्राप्त कर सकते हैं.

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तब उनकी पहचान के लिए राजा को बताया गया कि जब एक आंधी आएगी और तूफान अपने पूरे उफान पर होगा तो उस शख्स का चिराग आंधी और तूफान में भी जलता रहेगा. बस उसके बाद राजा उस लम्हें का इंतजार करते रहें और जब तूफान आया तो ख्वाजा शमसुद्दीन पानीपत का चिराग जलता रहा. तब उन्हें दरख्वास्त की गई और उनके नाम की नमाज अदा की गई जिसके बाद राजा को युद्ध में जीत मिली और तभी से एक कहावत 'मेरा चिराग उस मुकाम पर जलता है जहां आंधियों का भी पहुंचने में दम निकलता है' मशहूर हो गई.

Last Updated : Dec 28, 2020, 2:57 PM IST

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