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विश्व युद्ध से भी पुराना है पानीपत की कंबल मार्केट का इतिहास, विदेशों तक है यहां के कंबलों की छाप

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Published : Mar 6, 2022, 1:57 PM IST

पानीपत के कंबल मार्केट का इतिहास काफी साल पुराना है. जिसकी वजह से आज पानीपत के कंबलों की विदेशों तक में डिमांड है. साथ ही पूरे देश में कंबलों की रेट भी पानीपत के कंबल मार्केट से ही तय होती है. जिले के कंबल मार्केट के इतिहास को लेकर पढ़ें ये खास रिपोर्ट.

history of Panipat blanket market
history of Panipat blanket market

पानीपत: टेक्सटाइल नगरी के नाम से पूरे देश में मशहूर पानीपत का इतिहास काफी पुराना है. यह विश्व युद्ध का गवाह भी रहा है और पानीपत पूरे विश्व में अपने कंबल मार्केट की वजह से भी विख्यात है. यहां 90 रूपये से शुरू होकर 6 हजार रूपये तक के कंबल मिलते है. जिनमें सबसे ज्यादा बिकने वाला एक्रिलिक कंबल, मिंक कंबल, शौडी यार्न, पॉलिस्टर यार्न से बना कंबल, कोरियन मिंक कबंल है.

ऐसे में पानीपत में कंबल व्यवसाय के छोटे-बड़े उद्योग मिलाकर कुल 4 हजार दुकानदार हैं. इस कंबल मार्केट की दैनिक कमाई तकरीबन 30 करोड़ (Panipat Blanket Market Earnings) होती है. इतना ही नहीं पूरे देश में कंबल की रेट पानीपत का कंबल मार्केट ही तय करता है और देश के सभी राज्यों के व्यापारी यहां से थोक में कंबल खरीदते है.

विश्व युद्ध से भी पुराना है पानीपत के कंबल मार्केट का इतिहास, विदेशों तक है यहां के कंबलों की छाप

पानीपत के कंबल मार्केट का इतिहास- पानीपत में बनने वाले कंबल का इतिहास लगभग डेढ़ सौ साल पुराना (history of Panipat blanket market) है और यहां से कंबल दुनिया के कोने कोने में पहुंचता है. ऐतिहासिक नगरी के इतिहास के साथ ही पानीपत के कंबल का इतिहास और एक्सपोर्ट भी काफी पुराना है. पहले विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध में भी देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी यहीं से कंबल सप्लाई किया जाता था. सन 1902 में पानीपत का कंबल विदेशों में एक्सपोर्ट होना शुरू हुआ था और वर्तमान का इंसार बाजार उस समय कमलिया मार्केट के नाम से जाना जाता था. साथ ही यहां रहने वाले मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को कंबलिया मुसलमान कहा जाता था.

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इतिहासकार रमेश पुहाल ने बताया कि आजादी से पूर्व यहां हाथों से कंबल बनाने का काम किया जाता था. हर घर में छोटी-छोटी खड्डीया हुआ करती थी. जिससे अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए महिलाएं पुरुष सभी इस काम को करते थे. जिसके बाद बड़े-बड़े युद्ध हुए, तो पानीपत का कंबल मार्केट भी बढ़ता चला गया. विश्व युद्ध के दौरान जब विदेशों में कंबल पहुंचने लगा, तो मार्केट भी जोरों पर चलने लगा.

पानीपत के कंबल मार्केट में कंबल बनाते कारीगर

वहीं सन 1947 में बंटवारे के बाद जब यहां के कंबलिया मुसलमान पाकिस्तान चले गए, तो यह व्यापार बिल्कुल खत्म हो गया. जिसके बाद पाकिस्तान से इस काम को करने वाले कारीगरों की तलाश की गई, तो उनका ठिकाना हरियाणा का रोहतक जिला था. जिसके बाद सत्ताधारी लोगों ने रोहतक में आकर बसे हैदराबादी बिरादरी के लोगों को मुसलमानों द्वारा छोड़ी गई खड्डियों को चलाने का आग्रह किया और उन्हें पानीपत लेकर आए. जिसके बाद से पानीपत के कंबल व्यवसाय का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ता चला गया और यह कंबल बड़े स्तर पर अपनी पहचान बनाने लगा. अब यह कंबल दुनिया के हर एक कोने में अपनी छाप छोड़ चुका है

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