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सोशल मीडिया पर रील्स क्रेज से बढ़ी हरियाणवी दामण की डिमांड, दामण वाली दादी ने विदेशों तक पहुंचाई हरियाणवी संस्कृति

पानीपत में 74 साल की दामण आली दादी हरियाणावी संस्कृति को (Haryanvi Daman Demand) बढ़ावा देने में दिन रात मेहनत करती हैं. आज के दौर में इंस्टाग्राम रील बनाने का क्रेज हर किसी पर सवार है. ऐसे में हरियाणवी दामण पहनावे की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. दामण आली दादी इस पहनावे की सेल कर लाखों कमाती हैं.

Haryanvi Daman Demand after reels
रील क्रेज से हरियाणवीं संस्कृति को बढ़ावा

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Published : Feb 6, 2023, 9:57 PM IST

रील क्रेज से हरियाणवीं संस्कृति को बढ़ावा

पानीपत:सोशल मीडिया जैसेइंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर रील और हरियाणा में बढ़ रहे गानों में जिक्र आने से परंपरागत पहनावे दामण का क्रेज बढ़ने लगा है. हरियाणा के पानीपत में दामन सिलने वाली 74 वर्षीय कृष्णा देवी दादी दामण आली मशहूर हाे चुकी हैं. ऐसा इसलिए क्याेंकि हरियाणा की महिलाओं का जाे दामण और कुर्ती का पहनावा है और उस पर गोटेदार चुनरी ओढ़णा हरियाणवी संस्कृति की खास पहचान मानी जाती है. यह हरियाणा का पारंपरिक पहनावा है.

विदेशों तक पहुंची हरियाणवी संस्कृति:इस परिधान की धमक आज के इस आधुनिक काल में देश-विदेश तक पहुंचाने के लिए कृष्णा देवी जी-जान से जुटी हुई हैं. कृष्णा देवी दामण-कुर्ती सिलकर विदेशों तक हरियाणवीं संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं. वह डेढ़ साल में 7 से 8 लाख से ज्यादा के दामण, कुर्ती और गोटेदार चुनरी ओढ़णा बेच दिए हैं. गांव से विदेश तक लाेग उनकाे दादी दामण वाली के नाम से पहचानते हैं. वह गुरुग्राम, साेनीपत, करनाल, दिल्ली यहां तक कि विदेश में भी हरियाणा का पारंपरिक पहनावा भेज चुकी हैं. इस पहनावे को बनाने में काफी समय लग जाता है, लेकिन दामण आली दादी एक महीने में 6 से 7 दामण-कुर्ती तैयार कर देती हैं.

पानीपत में दामण वाली दादी

दादी के सफर की खूबसूरत शुरुआत:दादी कृष्णा ने बताया कि उन्होंने अपनी पुत्रवधु सुमित्रा के साथ मिलकर कपड़ाें की दुकान खाेली. लेकिन वह अच्छे से नहीं चली. इसके बाद वह हरियाणवी संस्कृति काे जिंदा रखने के लिए गुड्डा-गुड्डियां (हरियाणवीं कुर्ता-दामण वाली) बनाना शुरू किया. इसके बाद पड़ाेसन बिमला ने कहा कि जब गुड्डियाें के दामण बनाती हाे ताे दादी मेरे लिए भी बना दाे, बस पहला ही दामण सही बना और यहां से दादी के सफर की भी शुरुआत हो गई जब दादी के इस पहनावे को बनाने की शुरुआत इतनी शानदार हो गई तो सफर तो खूबसूरत और अच्छा भला कैसे नहीं होता. बस यहीं से दादी ने मुड़कर कभी नहीं देखा और आज दामण आली दादी प्रदेश के साथ साथ विदेश में भी दामण बना कर बेचती हैं.

क्या है दादी के दामण की खासियत:कृष्णा ने बताया कि वह करीब 35 मीटर कपड़े से एक दामण बनाती हैं. सबसे बड़ी खासियत ये है कि छाेटी बच्ची हाे या बड़ी महिलाओं के दामण वाे दाेनाें तरफ से उसे पहन सकती हैं. इसमें वह फूल, सितारे, पतला गाेटा, माेटा गाेटा, न्याेरी, पैमक आदि का इस्तेमाल करती हैं. पहले महिलाएं पैराें में चांदी के कड़े पहनती थीं, अब महिलाएं चांदी के कड़े नहीं पहनती हैं. इसके लिए वह खासताैर से गाेटे से ही कड़े व छैल कंगन भी बनाती हैं. इसके अलावा वह खास डिमांड पर भी कुर्ती-दामण तैयार करती हैं.

दामण वाली दादी ने विदेशों तक पहुंचाई हरियाणवी संस्कृति.

वीडियो क्रेज से संस्कृति को बढ़ावा: नारी तू नारायणी महिला उत्थान समिति की अध्यक्ष सविता आर्य ने बताया कि दादी कृष्णा डेढ़ साल में हरियाणा सहित विदेश में भी दादी दामण आली के नाम से मशहूर हाे गई हैं. उन्हाेंने बताया कि अब युवतियाें, बच्चियाें व महिलाएं दामण-कुर्ती पहनकर वीडियाे बनाने का क्रेज आ गया है, इससे भी हरियाणवीं संस्कृति काे बढ़ावा मिल रहा है. युवतियों के रील क्रेज से हरियाणवीं संस्कृति को भी काफी बढ़ावा मिल रहा है. आजकल के मॉर्डन जमाने में जीन्स और वेस्टर्न ड्रेसेज के चलन में दामण तो कहीं गायब सा हो गया था. युवतियां इस संस्कृति को कहीं भूल सी गई थी, लेकिन सिर चढ़े रील के क्रेज ने इस संस्कृति और पहनावे को फिर से बढ़ावा दिया है.

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दादी के बनाये दामण की कीमत: कृष्णा देवी बताती हैं कि, सोशल मीडिया पर रील बनाने के लिए लड़कियां, महिलाएं अब इसे सिलवाने लगी हैं. अब 35 मीटर कपड़े में तैयार यह दामण लगभग 5 हजार में तैयार होता है. अगर पूरे सेट की बात की जाए तो 8 से 9 हजार तक का सेट तैयार होता है. छोटी बच्चियों का सेट लगभग 4 से 5 हजार रुपए में तैयार हो जाता है. वहीं, 1 से 2 साल तक की बच्चियों के लिए दामण की कीमत दादी ने 2 हजार रुपये रखी है.

ससुराल में दामण बनाने की शुरुआत की:दादी कृष्णा बताती हैं कि वह 14 साल की उम्र से ही सिलाई करती हैं. शादी के बाद अपने ससुराल पानीपत के गांव नांगल खेड़ी में आई तो उस समय दामण का पहनावा हुआ करता था. वह 5 रुपये में दामण सील दिया करती थीं. धीरे-धीरे महिलाएं इसे पहनना छोड़ती गई और फिर दादी कुर्ता और सलवार सिलने लगी.अब दोबारा इस परंपरागत पहनावे का प्रचलन शुरू हो गया है.

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