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पानीपत की पहचान बनी पाकिस्तान से शुरू हुई दशहरे की परंपरा

पानीपत का दशहरा हर तरह से अलग है. यहां 74 साल पुरानी परंपरा के अनुसार हनुमान स्वरूप का नजारा देखने को मिलता है. पाकिस्तान में लहिया समाज ने 74 साल पहले हनुमान के मुकट-मुखौटा पहनकर नगर परिक्रमा की शुरुआत की थी.

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Published : Oct 24, 2020, 11:00 PM IST

हनुमान स्वरूप
हनुमान स्वरूप

पानीपत: देशभर में दशहरे को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. दशहरे पर जो रीत चली आ रही है उसे हम भली भांती जानते हैं, लेकिन पानीपत का दशहरा हर तरह से अलग है. यहां 74 साल पुरानी परंपरा के अनुसार हनुमान स्वरूप का नजारा देखने को मिलता है.

दरअसल, पाकिस्तान में लहिया समाज ने 74 साल पहले हनुमान के मुकट-मुखौटा पहनकर नगर परिक्रमा की शुरुआत की थी. विभाजन के बाद लहिया समाज के लोग भारत आए तो सबसे पहले पानीपत में नगर परिक्रमा निकाली गई. ये परिक्रमा अष्टमी से लेकर दशहरे के समापन तक निकाली जाती है.

सबसे अलग है पानीपत का दशहरा, यहां दिखता है हनुमान स्वरूप का नजारा

हनुमान का स्वरूप बनाने वाले चांद ने बताया कि उनके पूर्वजों के बाद वो इस प्रक्रिया को जारी रख रहे हैं और मूर्तिया बना रहे हैं, जिसमें पूरा परिवार उनका साथ देता है. उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां हरियाणा, उत्तरप्रदेश से लेकर गुजरात तक भेजी जाती हैं. ये परिवार पूरा साल मूर्तियां बनाता है और अपने परिवार का गुजारा करता है. आजादी के बाद से लेकर अब तक पानीपत में ये परंपरा चली आ रही है. सैकड़ों हनुमान सभाएं पानीपत में या पानीपत के अलावा दूसरे शहरों में भी हनुमान स्वरूप पहनकर झाकियां निकालती हैं.

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हनुमान स्वरूप बनने वाले बजरंग बली के भक्त 40 दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. ये अपने कामकाज का त्याज करते हुए मंदिरों में अपना डेरा जमाते हैं. व्रत रखकर एक समय का खाना खाते हैं और 40 दिनों तक जमीन पर सोते हैं. हनुमान स्वरूप के लिए मुकट मुखौटा बनाने वाले हन्नी बताते हैं कि ये उनके धर्म का प्रचार है, जो सालों से चला आ रहा है और इस परंपरा को वो आज भी जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं.

हनुमान स्वरूप की ये परंपरा पानीपत के दशहरे को चार चांद लगा देती है. केसरी रंग में रंगे बजरंग बली के भक्त उत्साह और जोश के साथ रावण दहन के लिए जाते हैं. दशहरे के अगले दिन तक व्रतधारी श्रद्धालु भक्त हनुमान स्वरूप धारण करके नगर परिक्रमा करते हैं. दशहरे के दो दिन बाद हरिद्वार पहुंचकर गंगा किनारे हवन के साथ परिक्रमा का समापन होता है.

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