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हरियाणा की वो दरगाह जिसे इंसानों ने नहीं जिन्नों ने बनाया था, 700 साल से आज भी है महफूज

ऐतिहासिक नगरी पानीपत में सिर्फ तीन युद्धों का इतिहास ही नहीं. बल्कि कई ऐसे किस्से समाए हुए हैं, जिनसे लोग शायद आज भी अनजान हैं. ऐसा ही एक किस्सा है पानीपत के कलंदर बाजार के बीच में बनी बू अली शाह कलंदर दरगाह (bu ali shah qalandar dargah panipat) का.

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Published : Jan 4, 2023, 12:19 PM IST

Updated : Jan 4, 2023, 12:43 PM IST

bu ali shah qalandar dargah panipat
बू अली शाह कलंदर दरगाह

महज ढाई घंटे में बनी पानीपत की बू अली शाह कलंदर दरगाह, 700 साल से ज्यादा पुराना है इतिहास

पानीपत: पानीपत के कलंदर बाजार के बीच में बनी बू अली शाह कलंदर दरगाह (bu ali shah qalandar dargah panipat) ना सिर्फ ऐतिसाहिक है बल्कि इसकी कहानी भी काफी रोचक है. यहां विदेशों से भी लोग मन्नत मांगने आते हैं. करीब 700 साल पुरानी दरगाह की विशेष मान्यता है. ये अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन की तरह सम्मानित है. यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं.

वीरवार को यहां अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है.

आप ताला लगाने की जगह पर देख सकते हैं कि लोग संदेश कागज पर लिख कर अपनी मन्नतें भी मांगते हैं और मानते पूरे होने के बाद यहां आते भी हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग गरीबों को खाना खिलाते हैं और दान-पुण्य करते हैं. वीरवार को यहां अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है. सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है. इस मौके पर दुनियाभर से बू अली शाह कलंदर के अनुयायी आते हैं. इस मकबरे के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती की कब्र भी है.

मान्यता है कि मन्नत पूरी होने के बाद आपके द्वारा यहां लगाया गया ताला अपने आप खुलकर नीचे गिर जाता है.

कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं. ज्यादातर लोगों के मुताबिक, पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे. उनके ज्ञान को देखते हुए किसी संत के कहने पर उन्होंने खुदा की इबादत शुरू की. लगातार 36 साल की तपस्या के बाद उन्हें अली की बु प्राप्त हुई थी. तभी से उनका नाम शरफुदीन बू अली शाह कलंदर हो गया.

यहां विदेशों से भी लोग मन्नत मांगने आते हैं.

पहले बू अली शाह कलंदर का नाम शरफुदीन था. 1190 ईस्वी में कलंदर शाह का जन्म हुआ. 122 साल की उम्र यानी 1312 ईस्वी में उनका इंतकाल हो गया. मरने से पहले उन्होंने कहा था कि उनको पानीपत में ही दफनाया जाए. उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे, लेकिन इनकी तालीम पानीपत से ही हुई. करीब साढे 700 साल पहले उन्होंने होई कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर भी काम किया. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे. इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं.

पानीपत के कलंदर बाजार के बीच ये दरगाह स्थित है.

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पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए नायाब पत्थर यहां मौजूद हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर लगे हैं. अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो ये जहर मोहरा पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से निकाल लेते हैं. दुनिया में सिर्फ कलंदर की ढाई दरगाह हैं. पहली पानीपत में बूअली शाह की, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में. चूंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की है, इसलिए उसे आधा का दर्जा है.

Last Updated : Jan 4, 2023, 12:43 PM IST

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