पंचकूला: कोरोना वायरस के चलते करीब 7 महीनों से स्कूल बंद हैं. बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर ना पड़े इसके लिए ऑनलाइन क्लासेज चलाई गई. जो अब बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. पंचकूला के पहाड़ी क्षेत्र मोरनी में छात्र जान जोखिम में डालकर ऑनलाइन पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इसकी बड़ी वजह है मोबाइल नेटवर्क की समस्या.
मोरनी के दापना गांव में सिग्नल नहीं मिलने की वजह से छात्रों को पेड़ पर चढ़ना पड़ता है. जिसके बाद ही वो पढ़ाई कर पाते हैं. इन तस्वीरों को देखकर शायद आप भी यही सोचेंगे कि क्या ये 21वीं सदी का डिजिटल भारत है.
पंचकूला के मोरनी में पेड़ पर चढ़ने से आता है मोबाइल नेटवर्क, क्लिक कर देखें वीडियो इस तरह होती है ऑनलाइन पढ़ाई
ऑनलाइन पढ़ाई के लिए इन छात्रों ने ऐसी जगह का चयन किया है जहां एक पेड़ है. सभी छात्र पढ़ाई के लिए पेड़ के नीचे चारपाई बिछाकर बैठ जाते हैं. इनमें एक छात्र हाथ में मोबाइल लेकर पेड़ पर चढ़ जाता है. वो एक हाथ से मोबाइल को सिग्नल के लिए ऊपर उठाता है और दूसरे हाथ से पेड़ को पकड़ता है. सिग्नल मिलने के बाद व्हाट्सअप पर जैसे ही स्कूल असाइनमेंट आ जाता है, वो नीचे चारपाई पर बैठे छात्रों को शेयर करता है. इस तरह से ये बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं. वहीं स्कूल के प्रिंसिपल पवन जैन ने भी माना कि इस क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क की बड़ी समस्या है.
छात्रा रिया ठाकुर ने कहा कि उनके गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. इसलिए वो एक युवक को फोन लेकर पेड़ पर चढ़ाते हैं. ताकि नेटवर्क मिलने पर हमें स्कूल से मिले होमवर्क के बारे में पता चल सके. उसी आधार पर हम अपनी पढ़ाई करते हैं. कई बार पेड़ पर चढ़ने वाला कोई नहीं होता तो हमें अपनी पढ़ाई करने में और मुश्किल होती है. ऐसी स्थिति में हमें खुद ही पेड़ पर चढ़ना पड़ता है.
पंचकूला के मोरनी ब्लॉक में 83 स्कूल हैं, जिनमें करीब साढ़े तीन हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं. पंचकूला से मोरनी वाया माधना से करीब 35 किलोमीटर के सफर में 25 किलोमीटर का रास्ता बिल्कुल सुनसान और जंगली है. यहां किसी भी कंपनी का नेटवर्क नहीं है. वहीं मोरनी से रायपुररानी के बीच करीब 25 किलोमीटर में से 15 किलोमीटर के रास्ते पर नेटवर्क की समस्या है. सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं छात्रों को ऑफलाइन पढ़ाई के लिए भी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ता है.
क्योंकि स्कूल जाने के लिए छात्र और छात्राओं को करीब दो किलोमीटर तक ऊबड़-खाबड़ और सुनसान जंगल को पार करना होता है. जो किसी भी तरीके से सुरक्षित नहीं है. इसके बाद छात्रों को स्कूल बस मिलती है. कई बार तो जंगल पार करने की वजह से उनकी स्कूल बस भी छूट जाती है. जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा परेशानी होती है. पांच साल के बच्चे भी सुनसान जंगल को पैदल पार करने को मजबूर हैं.
ये भी पढ़ें- हुड्डा के विशेष सत्र बुलाने की मांग पर विज का तंज, कहा- सेशन में तो गला सूख जाता है
ऑनलाइन शिक्षा इन छात्रों के लिए राहत कम और आफत ज्यादा साबित हो रही है. सिर्फ पंचकूला के मोरनी ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में यही हाल है. कहीं तो छात्रों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए मोबाइल नहीं है. तो कहीं नेटवर्क, ऐसे में ये छात्र अपने उज्जवल भविष्य के लिए जान जोखिम में उठाने को मजबूर हैं. बड़ा सवाल ये भी है कि पेड़ पर चढ़े इन छात्रों के साथ अगर कोई अनहोनी हो जाती है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा.