नूंह में शहीद नसरुदीन के परिवार की अनदेखी! अभी तक पूरे नहीं हुए वादे नूंह: हरियाणा जिले के नूंह निवासी नसरुदीन आतंकियों की गोली लगने से शहीद हो गए थे. 24 राजपूत के नायब सूबेदार नसरुदीन 13 अक्टूबर 2000 को 16 जवानों की टुकड़ी के साथ गश्त कर रहे थे. उस दौरान आतंकवादियों ने फायर शुरू कर दिया. मुठभेड़ में जांबाज नसरुदीन ने करीब पांच आतंकवादियों को ढेर कर दिया. इस दौरान उनको भी आतंकवादियों की गोली लग गई. जिससे की नसरुदीन शहीद हो गए.
ये भी पढ़ें- Kargil Vijay Divas: लद्दाख पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवानों को दी श्रद्धांजलि
शहीद नसरुदीन की शहादत को सलाम करने और उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए सूबे की तत्कालीन चौटाला सरकार के मंत्री, विधायक से लेकर गुरुग्राम के तत्कालीन डीसी अपूर्व कुमार सिंह समेत कई लोग पहुंचे थे. सरकार और प्रशासन की तरफ से गांव में पार्क बनाने, स्कूल का नामकरण करने, शहीदी स्थल बनाने, सड़क का नामकरण करने, पेट्रोल पम्प बनाने और उनके दोनों बेटों को नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन इनमें से आधे वादे अधूरे हैं.
नसरुदीन आतंकियों की गोली लगने से शहीद हो गए थे शहादत पर किए वादे अधूरे: शहीद नसरुदीन के परिजनों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. हिंगनपुर गांव में रह रहे शहीद के परिजनों ने सरकार पर वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाया है. हालांकि शहीद के पुत्र इरशाद अली को आरटीओ दफ्तर नूंह में नौकरी और छोटे बेटे इकराम की नौकरी सेना में गत वर्ष 2016 में लग चुकी है, लेकिन ना तो गांव में शहीद स्मारक बनाया गया और ना ही उनके नाम से पेट्रोल पंप बनवाया गया.
गांव में अभी तक शहीद का स्मारक नहीं बना. शहीद नसरुदीन के 5 बच्चे हैं. जिनमें दो बेटे इरशाद खान और मोहमद इकराम हैं. इरशाद खान को करीब 20 साल बाद नूंह जिले के आरटीओ ऑफिस में क्लर्क की नौकरी मिली, तो छोटा बेटा मोहमद इकराम को फतेहगढ़ उत्तर प्रदेश के सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद सैना में नौकरी मिली है. तीन बहनों की शादी हो चुकी है. शहीद नसरुदीन की पत्नी आयशा बेगम का कहना है कि सरकार ने जो वादे एवं घोषणा की थी, उनमें से दो बच्चे को नौकरी मिली है.
शहीद की कब्र को पक्का करने की मांग नहीं बना शहीद का स्मारक: सरकार और प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिली. उन्होंने कहा कि शहीद नसरुदीन के नाम से शाहचौखा-हिंगनपुर सड़क का नामकरण तो हुआ, औथा हाई स्कूल का नामकरण भी शहीद नसरुदीन के नाम से किया गया, लेकिन उसे रिकॉर्ड में दर्ज नहीं करवाया गया. परिजनों के मुताबिक शहीद नसरुदीन की कब्र अब जमींदोज हो चुकी है. उनका शहीद स्मारक नहीं बन पाया, पार्क नहीं बन पाया.
ये भी पढ़ें- Kargil Vijay Diwas 2023 : वीर जवानों की शहादत पर जो वादे हुए, वो आज तक अधूरे
इसके अलावा शहीद के परिजनों को पेट्रोल पंप नहीं मिला, स्कूल से लेकर सड़क तक का नामकरण तो हुआ, परंतु सिर्फ नाम तक ही सीमित रह गया. शहीद की पत्नी आयशा ने करीबी कस्बा पिनगवां के खेल स्टेडियम का नाम शहीद नसरुद्दीन के नाम पर करने की मांग की है. इसके अलावा उनकी मांग है कि कब्रिस्तान का मुख्य द्वार बनाने से लेकर कब्र को पक्की बेहतर ढंग से बनाना चाहिए. गांव में शहीद मीनार उनकी याद में बनानी चाहिए.