नूंह: जिले के तावडू खंड के गांव हसनपुर में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से चलाया जा रहा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर लोगों की सेहत सुधारने में कारगर साबित हो रहा है. सेंटर पर तैनात डॉक्टर्स के स्टाफ के अलावा आशा वर्कर की मेहनत से लोगों का सर्वे करने के बाद स्क्रीनिंग की जा रही है.
सेंटर में लोगों को सिखाया जाता है योग
समय-समय पर लोगों को बुलाया जाता है. साथ ही शरीर को निरोग बनाने के लिए हर शनिवार को योगा कराया जाता है. लोगों के जीवन को निरोगी बनाने में काफी हद तक सफल होता दिखाई दे रहा है.
नूंह का हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, देखें वीडियो इतने लोगों ने उठाया लाभ
जानकारी के मुताबिक सिक्योरिटी के दौरान हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के अंदर कैंसर का कोई रोगी नहीं मिला, लेकिन बीपी तथा शुगर के करीब 16 लोग मिले हैं. इनमें 10 बीपी तथा 6 शुगर के मरीज मिले हैं. इसी सेंटर पर बीपी शुगर के अलावा दो प्रकार के कैंसर का पता लगाया जा सकता है. जबकि एक खास किस्म के कैंसर की जांच के लिए करीब 3 किलोमीटर दूर एमपीपीएससी में जाना पड़ता है.
लोगों को खल रही बिजली की कमी
हसनपुर सेंटर के अंतर्गत हसनपुर बेरी खड़क ढाणी के अलावा सब्रस गांव आते हैं. सेंटर के अंतर्गत करीब 7 हजार 160 की आबादी है. इसमें 2 हजार 345 लोग 30 साल की आयु से अधिक हैं. जिनकी स्क्रीनिंग आयुष्मान भारत योजना में की जाती है. सेंटर पर आकर सुविधाओं की बात करें तो भव्य भवन के अलावा दवाइयां उपकरण फर्नीचर सब कुछ है लेकिन दिन में बिजली कम आने की वजह से इनवर्टर की कमी खलती है. सफाई कर्मचारी नहीं होने के कारण कुछ दिक्कतें सामने आती हैं.
इन चीजों को खाने से बचें ?
हसनपुर गांव के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से लोगों को समय और धन की बचत होने के साथ-साथ दवाइयां भी मुफ्त मिल रही हैं. डॉक्टर मृदुला ने बातचीत के दौरान कहा कि सुबह की सैर, योगा करना जरूरी है, खान-पान के साथ इंसान के दिनचर्या में बीपी शुगर की बीमारी के बाद बदलाव आ जाता है. नमक छोड़कर सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, तली हुई चीजें नहीं लेनी चाहिए, भैंस का दूध या तो बंद कर दें या फिर बिल्कुल पतला करके पिएं. टोंड दूध का इस्तेमाल बीपी के मरीज करें तो अच्छा लाभ होगा.
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डॉक्टर मनीषा के मुताबिक बीपी बढ़ने से ब्रेन हेमरेज, अटैक इत्यादि कई प्रकार की जानलेवा बीमारी हो जाती हैं. जिनमें जान जाने का खतरा बना रहता है. ग्रामीणों के मुताबिक हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर जो स्टाफ कार्यरत है. वो अधिकतर समय उपस्थित मिलता है. डॉक्टर के मुताबिक 30 साल की आयु से अधिक लोगों की जांच का सिलसिला अभी जारी है. इस अभियान को सफल बनाने के लिए गांव की आशा वर्कर का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है.