नूंह:देश की राजधानी दिल्ली से करीब 80 किमी दूर स्थित है हरियाणा का जिला नूंह. जिसके माथे पर सबसे पिछड़ा होने का कलंक है. यहां विकास की रोशनी आजादी के इतने साल बाद भी नहीं पुहंची, लेकिन यही जिला पूरे देश की बेटियों को स्वाभिमान का संदेश दे रहा है.
हरियाणा के नूंह जिले का किरूरी गांव अब आम से खास हो गया है. एक तरफ जहां हमारे समाज में बेटियों को पराया धन मानने की सोच रहती है, उसी दौर में हरियाणा के इस छोटे से गांव ने पूरे समाज को आईना दिखाने के लिए एक शानदार पहल की है. जो अपने आप में बेटियों के सम्मान को लेकर एक नजीर है. करीब 1200 की आबादी वाला ये पूरा गांव बेटियों के नाम समर्पित है.
देश का पहला ऐसा गांव जिसका हर घर बेटियों को है समर्पित, देखिए वीडियो एक अभियान से बढ़ा बेटियों का स्वाभिमान!
इस अभियान के पीछे एक खूबसूरत और प्रगतिशीत सोच भी है. कभी सेल्फी विद डॉटर अभियान से चर्चा में आये हरियाणा के पूर्व सरपंच सुनील जागलान ने ही इस गांव में लाडो स्वाभिमान अभियान की अलख जगाई है. उनका मकसद है कि जिस पिता की संपत्ति में समाज बेटियों का कोई अधिकार नहीं समझता अगर वही पिता अपने घर को बेटी के नाम से पहचान दे तो लोगों की सोच बदलेगी.
क्या कहती हैं किरूरी गांव की सपरपंच?
खास बात ये है कि किरूरी गांव की सरपंच भी महिला हैं. जिन्होंने गांव की पहले तस्वीर बदली और अब बेटियों की तकदीर बदलने में भूमिका निभा रही हैं. सरपंच अंजुम आरा का कहना है कि हमारे गांव की ये तस्वीर जब देश के सामने जाएगी तो लोग जान लेंगे कि यहां मां-बाप अपनी बेटियों को पढ़ाने और उनके भविष्य के लिए कितने सजग हैं. उनका मानना है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से जो अलख प्रधानमंत्री ने जगाई थी, उसे उनका गांव किरूरी आगे बढ़ा रहा है.
खुश हैं किरूरी गांव की बेटियां
किरूरी गांव की बेटी निशु कहती हैं कि आज घर पर हमारे नाम की नेम प्लेट लगी है, तो हमें बहुत अच्छा लगा है. उनके माता, नानी के जमाने में ऐसी मुहिम नहीं चली, लेकिन हम गर्व महसूस कर रहे हैं. एक और बेटी वंदना का कहना है कि गांव में स्वाभिमान उत्सव से हमारे माता-पिता को जितनी खुशी हुई है उससे कहीं ज्यादा हमें खुशी मिली है.
जरा सोचिए ये वही प्रदेश है. जहां कहा जाता था कि बेटियों को घरों में, घूंघट में रखा जाता है.लेकिन आज उसी प्रदेश में एक ऐसी मुहिम की शुरुआत भी हुई है, जो सिर्फ हरियाणा या पूरे देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में होना चाहिए.इसी सोच से बेटियां पढ़ेंगी भी और बढ़ेंगी भी.
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