नूंह: दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी जमात का मरकज चर्चा का विषय बना हुआ है. मरकज में फैला संक्रमण देश के कोने-कोने तक पहूंचने लगा है. आज 'तबलीगी जमात का मरकज' नाम सुनते ही लोगों के दिलों में खौफ पैदा हो जाता है. लोग सहम रहे हैं और डरने की वजह भी है. मरकज से निकले ये लोग अब कोरोना वायरस के 'सुपर स्प्रेडर' बन चुके हैं.
मौलाना साद के पूर्वज ने शुरू की मरकज
बहुत कम लोग जानते होंगे कि तबलीगी जमात की शुरुआत हरियाणा के मेवात इलाके से 1926-1927 में हुई थी.
मरकज जमात की शुरूआत दिल्ली के मरकज निजामुद्दीन मौलाना साद के पूर्वज हजरत मौलाना मोहम्मद इलियास रहमतुल्लाअलेह ने की थी. मौलाना साद मोहम्मद इलियास की चौथी पीढ़ी के मौलाना हैं. मौलाना साद का पैतृक गांव कांधला है, जो उत्तर प्रदेश के शामली जिले में आता है. मरकज निजामुद्दीन की कमान मोहम्मद इलियास के परिवार के हाथ में ही रही. और आज इस जमात के अमीर(मुखिया) मौलाना साद हैं. तबलीगी जमात का सफर करीब 93 साल का हो चुका है.
तबलीग़ी जमात की पहली मीटिंग भारत में 1941 में हुई थी. इसमें 25, हज़ार लोग शामिल हुए थे. 1940 के दशक तक जमात का कामकाज़ अविभाजित भारत तक ही सीमित था, लेकिन समये के साथ इनकी तादाद पूरी दुनिया में बढ़ गई.
तबलीगी जमात के प्रमुख
भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आने के बाद मौलाना इलियास कांधलवी ने 1926-27 में तबलीगी जमात का गठन किया. इस तरह से वो तबलीगी जमात के पहले अमीर(प्रमुख) बने. मौलाना इलियास पहली जमात हरियाणा के मेवात लेकर गए थे.
मौलाना इलियास के निधन के बाद उनके बेटे मौलाना यूसुफ तबलीगी जमात के अमीर यानि मुखिया बने. मौलाना यूसुफ की 1965 मौत के बाद बाद मौलाना इनामुल हसन तबलीगी जमात के प्रमुख बने. इनामुल हसन के दौर में तबलीगी जमात का सबसे ज्यादा विस्तार हुआ. तीस साल तक वो इस पद पर रहे, इस दौरान देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में तबलीगी जमात के का विस्तार हुआ.