नूंह: किसान बागवानी विभाग (Horticulture Department Nuh) नई-नई तकनीक के जरिए किसानों को खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है. मल्चिंग (Mulching Farming Techniques), स्टेकिंग (staking farming techniques) और ड्रिप तकनीक (drip irrigation technology) के बारे में विभाग किसानों को लगातार जागरुक भी कर रहा है. किसान बागवानी विभाग के इस प्रयास का असर भी अब दिखने लगा है. किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं.
क्या है मल्चिंग तकनीक? मिट्टी ऊपर की सतह को ढककर रखने को मल्चिंग कहा जाता है. इस तकनीक में मिट्टी की सतह पर जैविक खाद का की लेयर बिछा दी जाती है. जिससे कि वाष्पित प्रक्रिया धीमी हो जाती है. इससे मिट्टी का तापमान बरकरार रहता है. जिससे खरपतवार और जंगली घास के विकास में रुकावट पैदा होती है. इस प्रक्रिया को मल्चिंग कहते हैं. इससे किसानों की लागत कम लगती है जबकि मुनाफा ज्यादा होता है. जिला बागवानी अधिकारी डॉक्टर दीन मोहम्मद ने बताया कि मल्चिंग प्रणाली पर 6400 प्रति एकड़ सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है. अगर सब्जी की बात करें तो 80000 प्रति एकड़ सरकार सब्सिडी देती है.
क्या है बांस स्टेकिंग तकनीक? स्टेकिंग तकनीक से खेती करने के लिए खेतों में बने हुए मेड़ के आसपास लगभग 10 फीट की दूरी पर 10-10 फीट के ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं. उसके बाद इन डंडों पर दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांध दिया जाता है. लोहे का तार बांधने के बाद सब्जियों के पौधों को सुतली की सहायता से तार के साथ बांध दिया जाता है. जमीन से दूरी होने की वजह से इस तकनीक में सब्जियों में कीड़े लगने की संभावना ना के बराबर रहती है.