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Antyodaya Canteen in Nuh: हरियाणा की इस कैंटीन में महज 10 रुपये में मिलता है भरपेट और स्वादिस्ट खाना, जानें खासियत - अंत्योदय आहार योजना

Antyodaya Canteen in Nuh: आज की कमर तोड़ महंगाई के दौर में अगर दस रुपये में आपको भरपेट खाना मिल जाए, तो क्या आप यकीन करोगे? हरियाणा की अंत्योदय कैंटीन में किसान और मजूदरों को दस रुपये में भरपेट खाना दिया जा रहा है. जानें कैंटीन की खासियत.

antyodaya canteen in nuh
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 16, 2023, 10:08 AM IST

हरियाणा की इस कैंटीन में महज 10 रुपये में मिलता है भरपेट और स्वादिस्ट खाना

नूंह: हरियाणा श्रम विभाग की अंत्योदय आहार योजना से नूंह शहर में रोजाना सैकड़ों गरीब-मजदूरों को महज 10 रुपये में भरपेट खाना मिल रहा है. इसके अलावा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी पांच महिलाओं को भी इस कैंटीन की वजह से रोजगार मिला हुआ है. करीब डेढ़ साल से अडबर चौक पर अपना होटल के पास ये कैंटीन चलाई जा रही है. जिसमें रोजाना 200 के करीब मजदूर अपना पेट भरते हैं.

10 रुपये में भरपेट खाना: इस कैंटीन में कोई भी 10 रुपये का टोकन लेकर चार रोटी, एक सब्जी, एक दाल और चावल की थाली लेकर भरपेट खाना खा रहे हैं. अगर किसी मजदूर को अतिरिक्त रोटी या सब्जी की जरूरत होती है, तो कैंटीन में उसे आसानी से एक्स्ट्रा खाने का सामान मिल जाता है. करीब डेढ़ साल पहले श्रम विभाग की मदद से श्री कृष्ण स्वयं सहायता समूह उजीना ने इस कैंटीन की शुरुआत की थी. प्रतिदिन इस कैंटीन में तकरीबन 2000 रुपये का खाना बनता है.

इस कैंटीन को प्रतिदिन 3000 रुपये श्रम विभाग की तरफ से दिए जाते हैं. जिसमें सब्जी, आटा, दाल, चावल इत्यादि सामान आ जाता है. कैंटीन में ठंडे पानी की व्यवस्था के साथ, साफ-सफाई का पूरा इंतजाम देखने को मिलता है. कैंटीन चलाने वाली स्वयं सहायता समूह प्रधान हेमलता के अलावा लक्ष्मी मरोड़ा, बबीता मरोड़ा, मुबीना टाई और नीतू खाना बनाकर हर महीने 8000 से अधिक कमा रही हैं. नूंह हिंसा के दौरान आरएएफ के जवानों ने भी इस कैंटीन में 10 रुपये की थाली का जायका लिया था. नूंह हिंसा के दौरान ये कैंटीन महज दो दिन बंद रही थी.

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श्रम विभाग ने कैंटीन के लिए 18000 रुपये प्रति महीने किराए पर ये बिल्डिंग ली हुई है. इसके अलावा बिजली का बिल भी श्रम विभाग ही वहन करता है. कुल मिलाकर सुबह 8 बजे स्वयं सहायता समूह से जुड़ी पांच महिलाएं कैंटीन में पहुंच जाती हैं और दोपहर 3:30 बजे तक जितने भी मजदूर व गरीब पहुंचते हैं, उन सबको खाना खिलाती हैं. उसके बाद बर्तन वगैरह साफ करने का काम करती हैं, ताकि सुबह फिर से आकर मजदूर व गरीबों के लिए साफ सुथरा व लजीज व्यंजन बनाया जा सके. सीजन के हिसाब से कैंटीन में सब्जियां बनाई जाती हैं.

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल: इस कैंटीन में हिंदू - मुस्लिम एकता की मिसाल भी देखने को मिलती है. यहां खाना बनाने वाली 5 महिलाओं में चार हिंदू समाज से हैं, तो एक महिला मुस्लिम समाज से भी है. इसके अलावा कैंटीन में निगरानी रखने वाला शख्स भी मुस्लिम समाज से है. पिछले डेढ़ साल में कभी भी इस कैंटीन में आपसी भाईचारे को ठेस नहीं लगी. नूंह हिंसा के दौरान इलाके में भले ही लोगों में डर था, लेकिन आम दिनों की तरह इस कैंटीन में खाना बनाने वाली पांच महिलाएं इसी भाईचारे के साथ रहती और खाना बनाकर गरीबों-मजदूरों का पेट भरती रही.

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