कुरुक्षेत्र: भगवान शिव का पूजन करने के लिए वैसे तो हर दिन किसी अवसर से कम नहीं, अगर बात सावन के सोमवार की हो, तो ये मौका सर्वोत्तम माना जाता है. इस दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त तरह-तरह से पूजा अर्चना करते हैं. सावन के सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस बार 18 जुलाई यानी आज सावन का पहला सोमवार (sawan first monday) है. सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू हुआ था जो 12 अगस्त को रक्षाबंधन के त्योहार तक चलेगा.
कुरुक्षेत्र में महाकालेश्वर मंदिर: सावन के पहले सोमवार के अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं. हरियाणा के ऐसे शिव मंदिर के बारे में जहां मान्यता है कि सावन के महीने में शिव की पूजा करने से सारे कष्ट व दोष दूर हो जाते हैं. इस मंदिर का नाम है महाकालेश्वर मंदिर (mahakaleshwar temple in kurukshetra) जिसे श्री दुखभंजन महादेव मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि इस मंदिर में पांडवों ने अपने कष्टों से निवृत्ति के लिए यहां शिवलिंग की पूजा की थी और इसके बाद उनके सारे कष्ट दूर हो गए.
कुरुक्षेत्र के महाकालेश्वर मंदिर में सभी दोष होते हैं दूर, बिना नंदी के विराजमान हैं भगवान शिव मंदिर में नहीं हैं नंदी:मंदिर के पुजारी के मुताबिक पांडवों की पूजा के बाद से यहां स्थापित शिवलिंग को दुखभंजन के नाम से जाना जाने लगा. यहां मान्यता है कि जो व्यक्ति पांच सोमवार को शिव की उपासना करता है. भगवान शिव उसके सारे दुखों का भंजन अर्थात भस्म कर देते हैं. सन्निहित सरोवर तट स्थित शिवलिंग स्वरूप को पूजने के लिए यहां प्रत्येक सोमवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है. धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महाकालेश्वर ऐसा मंदिर जहां शिवलिंग के साथ नंदी विराजमान नहीं है.
मान्यता है कि कुरुक्षेत्र में महाकालेश्वर मंदिर में पूजा करने से सारे दोष दूर हो जाते हैं. रावण ने की थी तपस्या: ये अपनी तरह का दुनिया में एक इकलौता मंदिर है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में लंकापति रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने यहां शिव की तपस्या करके अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी. द्वापर में जयद्रथ ने भी इस मंदिर में तपस्या की थी. मान्यता है कि यहां पूजा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और इस मंदिर में लंकापति रावण काल पर विजय की प्राप्ति के लिए यहां शिव की तपस्या की थी. रावण को वरदान देने के लिए खुद शिव प्रकट हुए थे.
इस वरदान का साक्षी ना हो, इसलिए भगवान शिव का नंदी को नहीं लाए थे. तभी से यहां नंदी विराजमान नहीं हैं. मंदिर के पुजारी पंडित सदानंद शास्त्री ने बताया कि मान्यता है कि आकाश मार्ग से गुजरते वक्त रावण का विमान डगमगाने लगा. रावण यहां नीचे उतरा और यहां शिवलिंग को देख कर रुक गया. यहां रावण ने शिव की तपस्या की थी. रावण की लंबी तपस्या की खुश होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने प्रार्थना की कि इस घटना का कोई साक्षी नहीं होना चाहिए. उस समय भगवान शिव नंदी को अपने से दूर किया था. तभी से यहां भगवान शिव लिंग की पूजा बगैर नंदी के की जाती है.
यह मंदिर शेखचिल्ली के मकबरे से कुछ ही कदमों की दूरी पर है. इस कहानी के बारे में शिव भक्ति सागर पुस्तक में यह लिखा गया है. कालेश्वर मंदिर शिव का सिद्ध पीठ है, जिसकी स्थापना अत्रताय देवता ने सतयुग में की थी. इस मंदिर और भगवान शिव की महिमा ओर किस्से और कथा में सुनाई देती है. बताया जाता है कि जो भी श्री कालेश्वर भगवान की छत्रछाया में आता है. उसकी कुंडली से सर्प काल दोष दूर हो जाता है. इसलिए बहुत से श्रद्धालु यहां नियमित रूप से यहां शिव का तिल के तेल गन्ने के रस और पंचामृत से स्नान करने के लिए आते हैं. यह मंदिर थानेश्वर रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर है. यह मंदिर शेखचिल्ली के मकबरे से कुछ ही कदमों की दूरी पर है.