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ओडिशा महिला कारीगरों का कमाल! हस्तकला के जरिए अपने गांव को राष्ट्रीय स्तर पर दिलाई पहचान

International Gita Mahotsav 2023: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में खूब रौनक देखी जा रही है. धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में देशभर से आए शिल्पकार व कलाकारों ने लोगों को अपनी प्रतिभा से आर्कषित किया है. हर रोज गीता महोत्सव में लाखों लोग पहुंच रहे हैं. ओडिशा महिला कारीगरों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों को भी लोग काफी पसंद कर रहे हैं.

International Gita Mahotsav 2023
International Gita Mahotsav 2023

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 11, 2023, 6:38 PM IST

महिलाओं की कला ने राष्ट्रीय स्तर पर गांव को दिलाई पहचान

कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में अलग-अलग राज्यों की शिल्पकला और लोक संस्कृति को दिखाया जा रहा है. कलाकारों कि इस प्रदर्शनी को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. महोत्सव में ओडिशा के कालाहांडी जिले से महिलाओं के स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाई गई कला का प्रदर्शन भी अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में किया जा रहा है. यहां पर दोकरा कला के पीतल से बनाई गई मूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई गई है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

ओडिशाकी महिलाओं ने बनाई मनमोहक मूर्तियां:भारत सरकार डिजिटल पर जोर दे रही है. लेकिन देश में आज के समय में भी न जाने कितने गांव ऐसे हैं जहां सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई है. ओडिशा में भी एक ऐसा गांव है जहां न बिजली पहुंची है और न ही शिक्षा पहुंच पाई है. लेकिन यहां की महिलाओं ने अपनी कला के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के दिलों में छाप जरूर छोड़ी है.

कलाकृतियों में दर्शाया जाता है आदिवासी कल्चर

गांव में साधन कम, टेलेंट ज्यादा:महोत्सव में उड़ीसा से आए शिल्पकार रंजन ने बताया कि वह ओडिशा कालाहांडी जिले के गांव कांकेरी के रहने वाले हैं. उनका गांव जंगलों से लगता हुआ चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. उन्होंने बताया कि अभी तक उनके गांव में न को बिजली पहुंच पाई है, न इंटरनेट और न ही उनके गांव में किसी के पास मोबाइल फोन है. यहां तक कि इस गांव में आज तक शिक्षा के लिए एक स्कूल तक नहीं बनाया गया है. बिजली न होने के चलते पूरे गांव को तमाम समस्याओं से जूझना पड़ता है.

गांव से दूर है स्कूल: कांकेरी गांव में सुविधाएं भले ही कम हो लेकिन वहां के लोगों का जज्बा काबिले तारीफ है. महिलाओं द्वारा बनाई गई दोकरा कला की आकर्षक मूर्तियों को राष्ट्रीय स्तर पर अलग ही पहचान मिल रही है. ऐसे में गांव की महिलाएं भी काफी उत्साहित हैं और दिन रात मेहनत करने में जुटी हैं. गांव के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने गांव से स्कूल के लिए 10-12 किलोमीटर तक दूर जाना पड़ता है.

बेहद आर्कषक है मूर्तियां

ओडिशा राज्य के लिए बनाई जाती थी मूर्तियां:शिल्पकार रंजन ने बताया कि उनके गांव में यह मूर्तियां पिछले 30 सालों से बनाई जा रही है. इस कला को लोगों तक पहुंचाने में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कुछ सामाजिक संस्थाएं भी उनके गांव में आई थी और महिलाओं की इस कला की काफी तारीफ भी की थी. कुछ संस्थाओं ने महिलाओं की इस कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए काफी मदद की. शुरुआत में केवल ओडिशा राज्य के लिए ही कलाकृतियां तैयार की जाती थी.

कलाकृतियों में दर्शाया जाता है आदिवासी कल्चर :रंजन ने बताया कि दोकरा कला सिर्फ ओडिशा राज्य में गांव के पास ही है. उन्होंने कहा कि वह अपने दोकरा कला में पीतल से मूर्तियां बनाते हैं. जिसमें वह देवी देवताओं समेत पशु-पक्षियों और जानवार तथा आदिवासियों की संस्कृति को भी आर्ट के जरिए दिखाते हैं. कुछ समय पहले उनका कांकेरी गांव भी आदिवासी क्षेत्र में ही शामिल था.

मूर्तियां बनाने में दो -तीन दिन का लगता है समय

महिलाओं की कला ने राष्ट्रीय स्तर पर गांव को दिलाई पहचान:शिल्पकार रंजन ने बताया कि इस कलाकृति से पहले गांव को कोई भी नहीं जानता था. लेकिन महिलाओं ने अपनी कला के जरिए गांव को पहचान दिलाई है. वह अपनी बनाई कलाकृतियों को देश के कौने-कौने तक पहंचा रही हैं. उन्होंने बताया कि वह अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर पहली बार आए हैं. लेकिन भारत में जितने भी बड़े मेले के उत्सव होते हैं, उन सभी में वह अपनी स्टॉल लगाने के लिए जाते हैं. लोग उनकी कलाकृतियों को खूब पसंद करते हैं.

2 से 3 दिन में तैयार होती हैं मूर्ति:उन्होंने बताया कि वह पीतल की मूर्तियां बनाने का काम अपने दोकरा कला के जरिए करते हैं. जिसमें विशेषकर सभी काम महिलाओं द्वारा किए जाते हैं. जिसमें वह देवी-देवताओं की मूर्तियां, जंगल के जानवर और आदिवासियों की संस्कृति को दर्शाते हैं. ये मूर्तियां 2-3 दिन में तैयार हो जाती है. इन मूर्तियों का सारा काम हाथ से ही किया जाता है. बिना बिजली की मदद से दीपक की रोशनी में यह मूर्तियां तैयार की जाती हैं. उनके पास 200 से 10 हजार तक की मूर्तियां बनाई जाती हैं.

ओडिशा की महिला शिल्पकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां

मूर्तियां बनाने का तरीका:पहले वह गीली मिट्टी से मूर्ति तैयार करते हैं उसके बाद वह सूख जाती है तो उसके ऊपर मोम चढ़ाया जाता है. मोम चढ़ाने के बाद उसके ऊपर पीतल चढ़ाया जाता है और अंतिम रूप देने के लिए उसको तीन से चार बार गर्म किया जाता है. ताकि मोम पिघल कर नीचे आ जाए और पीतल की मूर्ति की बन जाए. ऐसे में करीब 2 से तीन दिन में एक मूर्ति तैयार की जाती है.

गीता महोत्सव में लोगों को आर्कषित कर रही मूर्तियां

अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में मूर्तियों की ताबड़तोड़ बिक्री:उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर वह पहली बार अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी करने के लिए आए हैं. लेकिन पहली बार ही उनकी कलाकृतियों को यहां पर आने वाले पर्यटकों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है. जिसके चलते ओडिशा से हरियाणा के कुरुक्षेत्र में इस उत्सव पर आने के लिए उन्हें काफी खुशी हो रही है.

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