कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 पर विभिन्न प्रकार की कला का प्रदर्शन करने के लिए शिल्पकार पहुंचे हुए हैं जो अपने हाथ से बने हुए शिल्प कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, प. बंगाल से पहुंचे हुए शिल्पकार की कला लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. क्योंकि उन्होंने जीरी (धान )के एक-एक दाने को जोड़कर देवी मां की तस्वीर बनाई है. इसे देखने के लिए अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए पर्यटकों की भारी भीड़ लग रही है. साथ ही भारी संख्या में लोग इसकी खरीदारी कर रहे हैं.
जीरी के दाने से बनाई अनोखी मूर्ति: प. बंगाल के शिल्पकार कृष्णा सिंह ने कहा कि वह पिछले कई दशकों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पिछले 15 वर्षों से आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले वह लोहे, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी की मूर्तियां बनाया करते थे, लेकिन वह बहुत ही पुराने हो चुके थे जिसके चलते उन्होंने सोचा कि अपने ग्राहकों के लिए कुछ नए तरीके की मूर्ति तैयार की जाए. ऐसे में उन्होंने जीरी के एक-एक दाने से देवी मां की मूर्ति बनाई ,है जिसको देखने के लिए लोगों की अच्छी भीड़ उमड़ रही है. हालांकि इस मूर्ति का रेट भी कुछ ज्यादा नहीं है. कृष्णा सिंह 500 से ₹700 तक की है बेच रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं लोगों के लिए मार्केट में कुछ अलग लेकर आए हैं, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं.
6 घंटे में तैयार होती है जीरी के दाने से मूर्ति:उन्होंने कहा कि मिट्टी या अन्य चीज से मूर्ति बनाने में समय कम लगता है, लेकिन जीरी के दाने से मूर्ति बनाने में समय लगता है. दरअसल यह बारीकी का काम होता है. कृष्णा सिंह कहते हैं एक दिन में सिर्फ दो ही मूर्ति तैयार हो पाती हैं. करीब 6 से 7 घंटे में एक मूर्ति बनाई जाती है. इसलिए एक व्यक्ति दिन में दो ही मूर्ति बना पाता है. यह मूर्ति टेराकॉट पर जीरी के एक-एक दाने माता की मूर्ति को आकार दिया जाता है. मूर्ति में साज सजावट भी जीरी के दाने से की गई है.
परिवार के 10 से ज्यादा सदस्य टेराकॉट की शिल्प कला बनाने का करते हैं काम: शिल्पकार ने कहा कि वह यह काम कई दशकों से करते आ रहे हैं. इसमें उनके परिवार के सभी सदस्य उनका सहयोग करते हैं. शुरुआती समय में वह टेराकॉट से ही मूर्ति बनाया करते थे, लेकिन अभी उन्होंने और भी कई चीजों से मूर्ति बनाने की शुरुआत की है. उनके परिवार में 10 से ज्यादा सदस्य हैं जो सभी मूर्ति बनाने का काम कई वर्षों से करते आ रहे हैं. यह उनका पुस्तैनी काम है. इसके चलते उनके परिवार की रोजी-रोटी चल रही है. अहम पहलू यह है कि टेराकॉट से हरे रामा हरे कृष्णा, राधे राधे, चैतन्य महाप्रभु और कान्हा का खिलौना विशेष तौर पर तैयार किया जाता है. यह सभी खिलौने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में वेस्ट बंगाल से तैयार करके लेकर आए हैं. जिसके चलते गीता जयंती में आए हुए पर्यटक उनके स्टॉल पर इन सभी मूर्तियों को देखने के लिए आ रहे हैं और खरीदारी कर रहे हैं.
सोलो वुड से भी देवी मां की मूर्ति की जाती है तैयार: शिल्पकार ने बताया कि वह टेराकॉट के साथ-साथ सोलो वुड से भी देवी माता की तस्वीर तैयार करते हैं. सोलो वुड की लकड़ी काफी शुभ मानी जाती है. यही वजह है कि ज्यादातर घरों में इस लकड़ी से बनी हुई तस्वीर को लेकर जाते हैं और माता की पूजा अर्चना की जाती है.
1992 में उनके पिता को मिल चुका है स्टेट अवार्ड: शिल्पकार ने बताया कि उनका यह पुश्तैनी काम है जो काफी पीढ़ियों से चला आ रहा है, जिसके चलते उनके परिवार में एक अनोखी कला है. उनके अच्छे काम की सरहाना करते हुए वेस्ट बंगाल सरकार की तरफ से उनके पिता गुरन सिंह को 1992 में स्टेट अवार्ड के खिताब से नवाजा जा चुका है. अवार्ड मिलने के बाद उनके पिता की पूरे राज्य में काफी प्रशंसा की गई जिसके चलते परिवार वालों का हौसला बड़ा और परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर इस काम को और भी अधिक बुलंदियों तक पहुंचाया और जुनून के साथ इस शिल्प कला से जुड़ गए.