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इस विदेशी तकनीक से मछली पालन कर रहे किसान, परंपरागत खेती से दोगुना मुनाफा

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 में भारत में मछली की खपत 4 गुना बढ़ जाएगी. इस रिपोर्ट के आधार पर मछली पालन का व्यवसाय किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है.

fisheries in Jyotisar of Kurukshetra
fisheries in Jyotisar of Kurukshetra

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Published : Jul 3, 2020, 1:51 PM IST

कुरुक्षेत्र: सूबे के किसान अब ट्रेडीशनल खेती को छोड़कर कमर्शियल खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. कुरुक्षेत्र में किसानों में मछली पालन किसानों और युवाओं को भा रही है. नई-नई तकनीक आने की वजह से मछली पालन अब ट्रेंडिंग व्यवसाय बनता जा रहा है. ज्योतिसर में बने फिशरी ट्रेनिंग सेंटर में युवा अब नई तकनीकों के सहारे मछली पालन की ट्रेनिंग ले रहे हैं.

नई तकनीक आने के बाद मछली पालन का व्यवसाय दोगुनी गति से फलने फूलने लगा है. किसान इससे परंपरागत खेती के मुकाबले तीन गुना मुनाफा कमा रहे हैं फिश फॉर्मिंग के दो नए तरीके बायोफ्लॉक फिश फॉर्मिंग और रीसर्कुलर एक्वा कल्चर सिस्टम किसानों को खूब भा रहा है.

क्या है बायो फ्लॉक तकनीक?

बायो फ्लॉक सिस्टम की तकनीक से डेढ़ सौ गज प्लॉट में लगभग एक हेक्टेयर तलाब के बराबर मछली उत्पादन किया जा सकता है. ये तकनीक इंडोनेशिया और सिंगापुर में प्रचलित है. अब भारत में भी इस तकनीक का विस्तार काफी तेजी से हो रहा है. इस तकनीक में प्लास्टिक के टैंक बनाए जाते हैं और उनके ऊपर एक छत बना दी जाती है. ताकि पानी गर्म ना हो.

इस विदेशी तकनीक से मछली पालन कर रहे किसान

इस तकनीक में हर टैंक के अंदर एक एयर रेडिएटर लगाया जाता है ताकि पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम ना हो. टैंक में एक आउटलेट पाइप लगा होता है. जो गंदे पानी को बाहर निकालता है और एक इंलेट पाइप लगा होता है जो पानी की निरंतर सप्लाई को बनाए रखता है. रेडिएटर का काम पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखना होता है.

बायो फ्लॉक तकनीक से बिजली और पानी दोनों की खपत कम होती है. आउटलेट पाइप से निकले पानी को दोबारा फिल्टर करके भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है. इस टेक्निक से बनाए गए टैंक की चौड़ाई 10 फीट और ऊंचाई 4 फुट की होनी चाहिए. इस यूनिट को लगाने में लगभग 6 से 7 लाख रुपये तक का खर्च आता है. मछली पालक एक यूनिट में लगभग 5 से 6 टैंक बना सकते हैं.

क्या है RAS यानी रीसर्कुलर एक्वा कल्चर सिस्टम?

इस तकनीक से जरिए सीमेंट से टैंक बनाए जाते हैं. जिसमें मछली पालन किया जाता है. केंद्र सरकार इस सिस्टम को लगाने में पूर्णता सहायता भी कर रही है. इस तकनीक की मदद से पानी के बहाव को निरंतर बनाए रखना पड़ता है.

पानी के आने और जाने दोनों की पूरी तरह व्यवस्था की जाती है. इसके लिए ना तो आपको ज्यादा पानी और ना ही ज्यादा जगह की जरूरत पड़ती है. 1 एकड़ तालाब में करीब 25000 मछलियां डाली जाती हैं. जबकि इस तकनीक से 1000 लीटर पानी में कुल 110 से 120 मछलियां डाली जाती हैं. जिसमें एक मछली को केवल 9 लीटर पानी मिलता है.

इस मछली पालन की तकनीक में 625 वर्ग फीट का बड़ा और 5 फीट गहरा सीमेंट का टैंक बनाया जाता है. इस टैंक को बनवाने के बाद इसमें कुल 4000 मछली पाल सकते हैं. इस तकनीक में पानी को साफ रखने के लिए एक बड़ा एयर फिल्टर लगाया जाता है. जिसमें पानी की खपत बहुत कम होती है. गंदे पानी को दोबारा साफ कर कर री सर्कुलर कर दिया जाता है. ये तकनीक बायो फ्लॉक से थोड़ी महंगी है.

ज्योतिसर के मछली पालक दिलबाग सिंह ने बताया कि हर दिन इस व्यवसाय में लोग जुड़ते जा रहे हैं और बायो फ्लॉक सिस्टम को कुरुक्षेत्र के अंदर काफी लोग अपना चुके हैं. परंपरागत मछली पालन से 1 साल में एक बार प्रोडक्शन ली जाती थी और बायो फ्लॉक और आरएएस तकनीक से 1 साल में लगभग तीन बार मछली की प्रोडक्शन ली जा सकती है. इससे मुनाफा भी पुरानी तकनीक से 3 गुना है.

इन किस्मों से होगा ज्यादा मुनाफा

सरकार भी मछली पालन में किसानों का सहयोग दे रही है. सरकार ज्यादा मुनाफा देने वाली मछली की किस्में जैसी सिंगी, कोई कॉर्प को बढ़ावा दे रही है. जल्द ही इन किस्मों का प्रजनन करवा कर सरकार मछली पालकों को सौंप देगी. जिससे मछली पालन के व्यवसाय को 2 गुना बढ़ावा मिलेगा.

इन मछलियों की बाजार में कीमत 400 से लेकर 600 प्रति किलो तक है. हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पाले जाने वाली आईएमसी किस्म की मछलियों की कीमत 100 से 120 रुपये प्रति क्विंटल होती है. अगर इन नई किस्मों की मछलियों का पालन किसान तालाब में सीड डालकर करता है तो वो सभी व्यवसायों को पीछे छोड़ सकता है. आज के समय में मछली खाने वालों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

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