कुरुक्षेत्र: लगातार 22 दिन से तेल के दाम बढ़ रहे हैं. इन 22 दिनों में पेट्रोल करीब 10 रुपये और डीजल करीब 12 रुपये प्रति लीटर महंगा हो चुका है. आम आदमी बेहाल है. कांग्रेस ने भी तेल के बढ़े दामों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कांग्रेस आज प्रदेशभर में पेट्रोल-डीजल के बढ़े दामों को लेकर प्रदर्शन करेगी.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा तेल के बढ़े दामों को लेकर सवाल उठा चुके हैं. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि डीजल के दाम पेट्रोल से ज्यादा हुए हैं. इससे लोग परेशान हो रहे हैं.
शाहबाद में कांग्रेस नेता सुनीता नेहरा ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार लोगों को लूटने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जब किसानों की डीजल की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब सरकार ने तेल के दाम बढ़ाकर किसानों की कमर तोड़ दी. इसके विरोध में आज कांग्रेस कुरुक्षेत्र में प्रदर्शन करेगी. इसके साथ ही कांग्रेस राष्ट्रपति के नाम डीसी को ज्ञापन भी सौंपेगी.
कैसे तय होती है तेल की कीमत?
भारत में लगभग अस्सी फीसदी तेल का आयात किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल प्रति बैरल के हिसाब से खरीदा और बेचा जाता है. एक बैरल में तकरीबन 162 लीटर कच्चा तेल होता है. जिस कीमत पर हम पेट्रोल खरीदते हैं उसका करीब 48 फीसदी उसका बेस यानी आधार मूल्य होता है. यानी अगर पेट्रोल की कीमत 80 रुपये प्रति लीटर है तो उसका बेस प्राइस 36 रुपये होगा.
इसके अलावा करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी यानी 28 रुपये (80 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से), करीब 15 फीसदी सेल्स टैक्स यानी 12 रुपये (80 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से) और दो फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाई जाती है. तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, प्रॉसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने वाली रिफाइनरियों का चार्ज शामिल होता है. वहीं सेल्स टैक्स यानी बिक्री कर संबंधित राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है.
तेल पर कितना टैक्स?
हर राज्य में पेट्रोल और डीजल की कीमत अलग-अलग होती है. इसकी मुख्य वजह राज्य सरकार का लगाया जाने वाला बिक्री टैक्स है. यही वजह है कि मुंबई में पेट्रोल दिल्ली की तुलना में महंगा है. क्योंकि दिल्ली में बिक्री कर कम है और इसी वजह से अलग-अलग शहरों में तेल की कीमत भी कम-ज्यादा होती हैं.
विभिन्न राज्यों में ये बिक्री कर या वैट 17 फीसदी से लेकर 37 फीसदी तक है. हाल ही में कंपनियों ने लगातार पट्रोल की कीमतों में इजाफा किया है. तेल कंपनियों ने एक बार फिर से पेट्रोल की कीमतें बढ़ाकर कोशिश की है कि सरकारी तेल कंपनियों का घाटा पूरा किया जा सके. भारत में पेट्रोल की कीमतों का नियंत्रण सरकार नहीं करती बल्कि कंपनियां करती हैं. डीजल, कैरोसिन और रसोई गैस की कीमतों पर अभी भी सरकार का ही नियंत्रण है और इस पर सरकार सब्सिडी देती है.