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जज्बे को सलामः जलती चिता के पास 80 डिग्री तक तापमान में पीपीई किट पहन अंतिम संस्कार करा रहे कोरोना वॉरियर्स - गर्मी पीपीई किट कोरोना मरीज अंतिम संस्कार

तेज धूप के दौरान श्मशान में जल रही चिता से आसपास का तापमान 80 डिग्री तक पहुंच रहा है. इतनी गर्मी में पीपीई किट पहने नप कर्मियों के सिर का पसीने भी शरीर से होकर जूतों में पहुंच जाता है.

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जलती चिता के पास 80 डिग्री तक पहुंच जाता है तापमान, इसी गर्मी में पीपीई किट पहन अंतिम संस्कार करा रहे कोरोना वॉरियर्स

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Published : May 1, 2021, 6:01 PM IST

Updated : May 9, 2021, 6:41 PM IST

कुरुक्षेत्र: दिन में अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है. इस दौरान अगर कोई शख्स 10 मिनट के लिए भी धूप में खड़ा हो जाए तो कुछ मिनटों में ही वो पसीने से तर हो जाएगा, लेकिन इस चिलचिलाती गर्मी में भी नगर परिषद के कर्मचारी पीपीई किट पहनकर कोरोना मरीजों का दाह संस्कार करा रहे हैं.

तेज धूप के दौरान श्मशान में जल रही चिता से आसपास का तापमान 80 डिग्री तक पहुंच रहा है. इतनी गर्मी में पीपीई किट पहने नप कर्मियों के सिर का पसीने भी शरीर से होकर जूतों में पहुंच जाता है. अभी एक शव की चिता जलाकर किट निकालते ही हैं कि एंबुलेंस दूसरा शव लेकर पहुंच रही होती है.

इसी गर्मी में पीपीई किट पहन अंतिम संस्कार करा रहे कोरोना वॉरियर्स

कई शवों को खुद दी मुखाग्नि

नगर परिषद कर्मी कुलदीप ने बताया कि वायरस से संक्रमित शव से कई बार अपने भी दूरी बना लेते हैं. ऐसे में उन शवों की अंतिम क्रिया और मुखाग्नि वो दे देते हैं और तो और कई शवों की अस्थियां भी वहीं परिजनों को एकत्रित कर देते हैं.

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कुलदीप ने बताया कि उसके घर में बूढ़ी मां, उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं. वो जब शाम को कोरोना संक्रमित शवों का संस्कार कर घर जाता है तो अपने परिवार से भी अच्छे से नहीं मिल पाता. घर में उसका बिस्तर, खाने पीने और अन्य सामान अलग रखा हुआ है. मां की उम्र ज्यादा है इसलिए चिंता भी होती है कि कहीं वायरस मेरे साथ घर न चला जाए.

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कई बार नहीं खा पाते खाना

कई बार लगातार एक के बाद एक एंबुलेंस शवों को लेकर आती रहती है. ऐसे में उनकी चिता तैयार करने और अंतिम संस्कार में लगे रहते हैं और खाना खाने का भी समय नहीं मिल पाता. पत्नी बड़े प्यार से लंच बॉक्स तैयार करके देती है, लेकिन कई बार वो शाम को खाना घर वापस ले जाते हैं.

नहीं देखा जाता अपनों को खोने का दर्द

दरोगा विकास ने बताया कि उनका काम श्मशान में आए शवों की रजिस्टर में एंट्री करना है. शव को लेकर आए परिजन उन्हें दस्तावेज देते हैं और एंट्री कराते हैं तो डर रहता है कि कहीं किसी प्रकार से वायरस उनतक न पहुंच जाए. हालांकि वो थोड़े-थोड़े समय बाद ही हाथों को अच्छे से सैनेटाइज करते रहते हैं. अपनों को खोने का दर्द नहीं देखा जाता है.

Last Updated : May 9, 2021, 6:41 PM IST

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